मोरिशस , "आक्रोश" त्रैमासिक पत्रिका सेप्टेंबर माह 2021 में प्रकाशित
****ज़ूम की महिमा****
सिमटी हुई दुनियाँ आज फैल रही ज़ूम पर
रुकी ज़िन्दगानी आज भाग रही ज़ूम पर।
लॉक डाउन में अनलॉक हो रहे ज़ूम पर
बैठे बैठे घर मे दुनियाँ ,घूम रहे ज़ूम पर।
हाफ पैंट कोट टाई , पहन चले ज़ूम पर
चप्पल में मीटिंग ,अटेंड करे ज़ूम पर ।
वेबिनार की बाढ़ देखो आ रही ज़ूम पर
ज्वाइन कर ऑनलाइन सो रहे ज़ूम पर।
झाड़ू पोछा घर में ,ऑफ़ कैमरा ज़ूम पर
म्यूट अनम्यूट भूले, बातें,आउट हुई ज़ूम पर।
स्कूल ऑफिस का अखाडा घर,बना ज़ूम पर
बॉस सबको तंग करे , चौबीस घण्टे ज़ूम पर।
शादी और,बरही तेरही,हो रही है ज़ूम पर
बच्चे पैदा,छोड़ सब,हो रहा है ज़ूम पर।
जिसे देखो,फ़्री में गुरु,बना हुआ ज़ूम पर
कोरोना से बचाव,ज्ञान बाँट रहा ज़ूम पर।
छुए ,अनछुए लोग,हो रहे है,ज़ूप पर
कोरोना का रोना लोग रो रहे है ज़ूम पर।
सियासत की बिसात देखो बिछ रही ज़ूम पर
आंदोलन वाली टूलकिट बन रही ज़ूम पर।
ज़ूम का मालिक नोट छाप रहा झूम कर
कोरोना को दुआएं ,दिलसे दे रहा है झूम कर।
दवा और खाना काश मिल जाये ज़ूम पर
कसम खुदा की खुदा मिल जाये ज़ूम पर।