सायं सायं सन्नाटा मातम चारो ओर है
ख़बरों में हर तरफ छाया मौत शोर है
मनहूसियत सुबह लिए जाने कैसा भोर है
हाथों में मौत लिए सांसों की डोर है
मौत धुन कोरोना नाचे दुनियाँ झकझोर है
सहमा संगीत थमा ,डरा हुआ मोर है
मौत की बारिश से दुनियां सराबोर है
कब कौन भीग जाए खौफ , बरखा घनघोर है
कैद अपने घर में बन्दा जैसे कोई चोर है
हर पल हज़ार मौत किसी का न ज़ोर है
तरक्की लाचार आज ,गुम मौत का छोर है
छूने वाला चाँद आज इन्सा , बेबस कमज़ोर है
लेकिन कहीं न कही हम सब ज़िन्दगी में अपने नए नए रास्ते तलाश करने लग गए थे और तब जन्म हुआ नए नए कम्प्यूटर और ऐप की दुनिया, सब कुछ बदल गया , हम रोज़ नई नई चीज़े सीखते और सिखाने लग गए , उसी समय मैंने अपने सुसुप्त अवस्ता में पड़े हुए हुए यूट्यूब और ब्लॉग को जीवित करना प्रारम्भ किया।
बच्चों को संगीत वो भी ऑनलाइन सीखना बहुत मुश्किल काम है क्यों की सब की इंटरनेट स्पीड अलग अलग होने के कारण सब के पास आवाज़ अलग अलग या कभी पहुंचती ही नहीं थी इस लिए विडिओ बना कर और ब्लॉग को उसी नोटेशन को टाइप कर के देना शुरू किया , इसका परिणाम बहुत ही सुन्दर रहा , यहाँ तक की इसको करते करते मैंने भी बहुत कुछ सीखा , ऑनलाइन क्लास ,वेबिनार, लाइव ऑनलाइन परफॉरमेंस , ज़ूम ,टीम्स ने तो दुनिया ही बदल कर रख दी , इसी से प्रभावित हो कर मेरी एक कविता ुर आई वो इस प्रकार है
ज़ूम की महिमा
सिमटी हुई दुनियाँ आज फैल रही ज़ूम पररुकी ज़िन्दगानी आज भाग रही ज़ूम पर।लॉक डाउन में अनलॉक हो रहे ज़ूम परबैठे बैठे घर मे दुनियाँ ,घूम रहे ज़ूम पर।हाफ पैंट कोट टाई , पहन चले ज़ूम परचप्पल में मीटिंग ,अटेंड करे ज़ूम पर ।वेबिनार की बाढ़ देखो आ रही ज़ूम परज्वाइन कर ऑनलाइन सो रहे ज़ूम पर।झाड़ू पोछा घर में ,ऑफ़ कैमरा ज़ूम परम्यूट अनम्यूट भूले, बातें,आउट हुई ज़ूम पर।स्कूल ऑफिस का अखाडा घर,बना ज़ूम परबॉस सबको तंग करे , चौबीस घण्टे ज़ूम पर।शादी और,बरही तेरही,हो रही है ज़ूम परबच्चे पैदा,छोड़ सब,हो रहा है ज़ूम पर।जिसे देखो,फ़्री में गुरु,बना हुआ ज़ूम परकोरोना से बचाव,ज्ञान बाँट रहा ज़ूम पर।छुए ,अनछुए लोग,हो रहे है,ज़ूप परकोरोना का रोना लोग रो रहे है ज़ूम पर।सियासत की बिसात देखो बिछ रही ज़ूम परआंदोलन वाली टूलकिट बन रही ज़ूम पर।ज़ूम का मालिक नोट छाप रहा झूम करकोरोना को दुआएं ,दिलसे दे रहा है झूम कर।
दवा और खाना काश मिल जाये ज़ूम परकसम खुदा की खुदा मिल जाये ज़ूम पर।
हम सब लोगो ने बहुत कुछ खोया और बहुत कुछ पाया ,इस कोरोना ने तो बहुत कुछ आसान कर दिया जैसे की अब अमेरिका या फ्रांस जा कर पढ़ने की जरूरत नहीं है , स्कूल , कॉलेज, दुनियाँ का हर सामान सब कुछ घर बैठे ही उपलब्ध है
लेकिन वही इस महामारी ने इस ऑनलाइन क्लास और विडिओ बनाने एडिटिंग सिखने के कारण मेरी आँखों में फिर से समस्या उत्पन्न हो गई जिसका नतीजा है की आज मै अपनी आँखों से सब कुछ नहीं देख ,लिख पढ़ सकता, मेरी लिखने पढ़ने की स्पीड कम हो गई , विडिओ एडिटिंग बंद हो गई , मैं अपनी ज़िन्दगी को जीने के नये रास्ते फिर से तलाश रहा हूँ। लेकिन मेरा हौसल इन परेशानियों ने बढ़ा दिया है क्यों की मैं या तो जीतत हूँ या सीखता हूँ , ये सब अनुभव जो आप पढ़ रहे है वो मेरी बेटी ओलिव जो की क्लास 6TH में है ने टाइप किया है जो की पहले मैं टाइप करता था ,धन्यवाद