Tuesday 24 September 2013

Dangon par hindi kavita , @sunilagrahari

            






*****आया हूँ*****AYAY HUN 


दंगो के बाद तेरा मै अब दर्द बाटने  आया हूँ 
मौका है अच्छा सियासते मरहम लगाने आया हूँ 

तेरे जले हुवे घर के खातिर ,सरकारी पैसा आएगा 
उस पैसे में अपना भी हिसाब  लगाने आया हूँ 
मौका है अच्छा सियासते मरहम लगाने आया हूँ 

क़त्ल हुवे लोगो के खातिर सरकारी कफ़न जो आएगा 
उस कफ़न से कपड़ा काट अपना कुर्ता सिलवाने आया हूँ 
मौका है अच्छा सियासते मरहम लगाने आया हूँ 

दंगा पीड़ित  भूखो का जो राशन जो ट्रक भर आयेगा 
उस राशन को फिर वापस बाज़ार में बिकवाने आया हूँ 
मौका है अच्छा सियासते मरहम लगाने आया हूँ 

दंगों में बेगुनाह गिरफ़्तार करवा के ज्यादा फिर 
करवा की उनकी रिहाई  वोट पक्का करने आया हूँ 
मौका है अच्छा सियासते मरहम लगाने आया हूँ 

कुँए में है आधी रस्सी , चुल्हा भी अध् जला है 
इस दंगे की आंच में अपनी रोटी सकने आया हूँ 
मौका है अच्छा सियासते मरहम लगाने आया हूँ 


जब  शांति बहाल हो जायेगी ,तो मुझको कौन पूछेगा 
इस लिए तेरे जख्मों पे नमक लगाने आया हूँ 
मौका है अच्छा सियासते मरहम लगाने आया हूँ 

तेरे दर्द से मुझको क्या लेना ,तू पैदा हुवा दंगों के लिए 
मै पैदा हुवा सियासत के लिए ,सियासत करने आया हूँ  
मौका है अच्छा सियासते मरहम लगाने आया हूँ   

POEM ON POLITICS , POEM ON SIYASAT , POEM ON DANGAA, POEM ON COMMUNAL RIGHT RITES  
    

danga par kavita dekha hai maine - COMMUNAL RITES hindi poem @sunilagrahari

                         








……देखा है मैने… … … …

दंगों  की  सुलगती  आग को ,आसुवों  से बुझाया है मैने
    एक  मासूम को ,दंगों  का,समान बनते   देखा है ,

बचपन मे जिंनके संग खेला,वो खंज़र ले कर घूम रहे
बिन मतलब के इन दंगों मे,रिश्तों का  कत्ल   देखा है ,

वो वहशी, कत्ली  कब  बन गया ,ये उसको भी न पता चला 
अपनों के गुम  हो जाने पर ,उसे खड़ा बिलखते देखा है
माँ मिली ,बहन गायब घायल बेटा ,बाप गायब,
 ऐसे भरे कुनबे को,टुकड़ो में मिलते देखा है 
बही धार  जो आखों से ,वो अब तक न सूखी है 
डरे सहमे से  बच्चों को ,आँचल में छुपाते देखा है
बच्चों को कुछ पता नहीं क्यूँ मर रहे क्यूँ मार रहे 
उन छोटी छोटी आँखों में,एक  बड़ा सवाल  ? देखा है
बेटे की मौत के मातम पर ,बूढ़ी  आंख सिसकती है 
खुद के  जिंदा बच  जाने पर ,मौत को कोसते देखा  है 

मैंने ना बिगाड़ा कुछ तेरा ,अन्जान  है हम एक दूजे से
पाँव पडू मत मार मुझे,भीख रहम की माँगते देखा है 

जिसके कहने पे फसाद किये ,वो घर पे महफूज़ बैठा  है 
ऐसे सियासी बलवाइयों को,सब ने आँखों से देखा है  

कौमी मजहबी दंगो ने ,जी भर  एक दूजे को काटा 
लेकिन हर मजहब के लहू का,रंग एक ही मैंने देखा है .. 
रंग एक ही मैंने देखा है ..X3.......   
  
POEM ON POLITIC IN HINDI  , POEM COMMUNAL ON RITES ,
DEKHA HAI , POEM ON DANGAA








             

Wednesday 4 September 2013

गुरुर्  ब्रम्हा गुरुर् विष्णु गुरुर् देवो महेश्व्रह् : ,
गुरुर् साक्षात्  परब्रम्ह , तस्मै  श्री गुरुवे नमः ,

आप सभी  अध्यापक गण को अध्यापक दिवस
की बहोत बहोत शुभ कामना।