……देखा है मैने… … … …
दंगों की सुलगती आग को ,आसुवों से बुझाया है मैने
एक मासूम को ,दंगों का,समान बनते देखा है ,
बचपन मे जिंनके संग खेला,वो खंज़र ले कर घूम रहे
बिन मतलब के इन दंगों मे,रिश्तों का कत्ल देखा है ,
वो वहशी, कत्ली कब बन गया ,ये उसको भी न पता चला
अपनों के गुम हो जाने पर ,उसे खड़ा बिलखते देखा है
माँ मिली ,बहन गायब घायल बेटा ,बाप गायब,
ऐसे भरे कुनबे को,टुकड़ो में मिलते देखा है
बही धार जो आखों से ,वो अब तक न सूखी है
डरे सहमे से बच्चों को ,आँचल में छुपाते देखा है
बच्चों को कुछ पता नहीं क्यूँ मर रहे क्यूँ मार रहे
उन छोटी छोटी आँखों में,एक बड़ा सवाल ? देखा है
बेटे की मौत के मातम पर ,बूढ़ी आंख सिसकती है
खुद के जिंदा बच जाने पर ,मौत को कोसते देखा है
मैंने ना बिगाड़ा कुछ तेरा ,अन्जान है हम एक दूजे से
पाँव पडू मत मार मुझे,भीख रहम की माँगते देखा है
जिसके कहने पे फसाद किये ,वो घर पे महफूज़ बैठा है
ऐसे सियासी बलवाइयों को,सब ने आँखों से देखा है
कौमी मजहबी दंगो ने ,जी भर एक दूजे को काटा
लेकिन हर मजहब के लहू का,रंग एक ही मैंने देखा है ..
रंग एक ही मैंने देखा है ..X3.......
POEM ON POLITIC IN HINDI , POEM COMMUNAL ON RITES ,
DEKHA HAI , POEM ON DANGAA
POEM ON POLITIC IN HINDI , POEM COMMUNAL ON RITES ,
DEKHA HAI , POEM ON DANGAA
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