Wednesday 18 May 2016

Motivational poem, FAITH , FARK POEM BY SUNIL AGARAHARI - फ़र्क

       

******फ़र्क******

बीज में दम  हो तो ,पौधा ज़रूर निकलता है ,
फिर ज़मी बंज़र भी हो तो क्या फ़र्क  पड़ता है ,

आफ़ताब रोज़ दुनियां में कहीं न निकलता है  ,
फिर मुर्गा बांग  दे या नादे , क्या फर पड़ता है ,

हिम्मत से बढ़ो  ख़ुदा ज़रूर मदद करता है ,
फिर मुक़द्दर साथ ना दे ,क्या फ़र्क पड़ता है ,

इन्सां वही जो इंसानियत की इबादत करता है ,
फिर हो  किसी भी धर्म का, क्या फ़र्क पड़ता है ,

ठेस लगती  है कहीं भी तो ,दर्द ज़रूर होता है ,
फिर अमीर हो या गरीब ,क्या फ़र्क पड़ता है ,
  
हर रिश्ते को निभाने में, क़ुर्बान होना पड़ता है ,
फिर अपना हो या पराया , क्या फ़र्क पड़ता है , 

२४/०४/ २०१६