Sunday, 13 August 2017

TIRANGA azadi ka kavita - BY SUNIL AGRAHARI -hindi poem on national flag -तिरंगा

   




कह रहा तिरंगा ,मैं आज बड़ा खुश हूँ ,
देश की  सेवा में ,मे भी लगा हूँ 
कफ़न बनते बनते दुखी हो चुका हूँ ,
कुछ काम नया करने आज मैं चला हूँ,
वैसे तो सदियों से मैं बिकता रहा हूँ,
नेताओं दलालों सियासत में रहा हूँ
गद्दारो के वास्ते मैं विदेशों में बिका हूँ,
पर ग़रीबों के वास्ते आज बिकने चला हूँ,
ग़रीबों संग देश के चौराहे पे बिका रहा हूँ ,
मैं खुश हूँ गरीबों के काम तो आ रहा हूँ ,
लोग खरीद रहे शान से ,मैं शान से बिक रहा हूँ ,
कह रहा तिरंगा मैं आज बड़ा खुश हूँ ?......
पर समझ नहीं आता,
मैं कहाँ से ,किसके लिए आज़ाद हूँ ?

बेटियों को नोचते है आज़ाद ये दरिन्दे,
भूखे ग़रीब ग़ुलाम जैसे कैद में परिन्दे,
राज कर रही विदेशी आँग्ल भाषा, 
उपेक्षा की शिकार मेरी मातृ भाषा,
भूखा प्यासजिस दिन न कोई रहेगा,
अपनी छत के नीचे जब हर कोई रहेगा,
वतन का हर बच्चा जब स्कूल में पढ़ेगा,
हर गाँव प्रगति पथ पर जब आगे बढ़ेगा,
स्वास्थ्य सेवा जब हर जन को मिलेगा,
हर क्षेत्र में जब देशआत्मनिर्भर बनेगा 
भेद भाव मज़हब में जब खत्म होगा,
इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म होगा, 
जाति पात धर्म का न जब होगा दंगा,
प्रदूषण से आज़ाद जब होगी गंगा,
गर्भ वाली कन्या जब आंगन में बढ़ेगी,
स्वतंत्र आसमाँ में जब बेटियाँ उड़ेगी,
ये देश ही सब की जब होगी रियासत,
फ़िज़ूल बात पे बन्द जब होगी सियासत, 
देश से ऊपर जब कुछ भी ना होगा ,
देशवासी हिंदी में जब जय हिंद कहेगा,
आज़ादी का सूरज ये तब उदय होगा, 
देश में जनता का जब अन्त्योदय होगा, 
असल मे ये वतन तब आज़ाद होगा। 
असल मे ये तिरंगा तब आज़ाद होगा। 
असल मे ये तिरंगा तब आज़ाद होगा। 
 





 

१४/०८/२०१७


















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