Published in Mauritius
Magazine - Akrosh
September 18
गौरव पूर्ण जीवन ही ,मनुष्य का चरित्र से ,
धन और ऊंची शिक्षा, पदवी से नहीं होता है ,
समाज में सम्मान सदैव सदाचारी का ,
जाति और धर्म से सम्बन्ध नहीं होता है ,
ईर्ष्या तो ,हो जाती है ,धन वाले मान से ,
कभी कभी ज्ञान अभिमान हो जाता है ,
शुद्ध चरित्र से न करता है ईर्ष्या कोई ,
ऐसा सुचरित्र मन अशांत नहीं होता है ,
सुन्दर चरित्र के अंग भिन्न भिन्न है ,
रंग रूप इसमें भागीदार नहीं होता है ,
करता है सत्य पे अटूट विश्वास वो ,
सिद्धांतो का दृढ़ ,और कपट नहीं होता है ,
ऐसे ही चरित्र में प्रेम और दया वाला ,
सरल ह्रदय स्वयं भाव आ जाता है ,
आत्म गौरव , सुचरित्र का एक गुण है ,
नीच कार्य में वो कभी शामिल नहीं होता है ,
सोच समझ हर एक काम करता वो ,
रिश्वत के सामने कभी ,झुकता नहीं है ,
सुन्दर चरित्र को धन की ना चिंता कभी ,
चरित्रहीन धनवान निर्धन रह जाता है ,
ऐसे ही , कुछ गुण , मनुष्य में आ जाये तो ,
सभ्य कुलीन , शिष्टाचारी कहलाता है ,
पवित्र चरित्र के प्रधान अंग जीने वाले ,
देवता या जीवन्मुक्त योगी कहलाता है।
सुनील अग्रहरि
एलकोन इंटरनेशनल स्कूल
मयूर विहार - फेस -१
दिल्ली
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