*APAHIJ SHISTACHAR STORYU IN HINDI*
अपाहिज शिष्टाचार
यात्रा वृतांत (सत्य घटना )
लोकल ट्रेन स्टेशन पे रुकी रोज़ की तरह , और आँखे तलाश रही थी मेरी बैठने की जगह ,
मै घुसा डिब्बे में पिता जी के साथ , तभी एक बुज़ुर्ग ने आवाज़ दी मुझे, हिला के हाथ ,
कहा ,आओ बेटा यहाँ बैठो बाबू जी के साथ .
वो डिब्बा था ख़ास अपाहिज और बीमार लोगो का ,मगर उम्मीद ,दर्द ,शांति, जैसे से भरे हौसलों का ,
उसमे कोई महिला गर्भावस्था में,तो कोई बुज़ुर्ग ज़र्ज़र अवस्था में,जीवन की चाह से भरपूर
ज्यादातर लोग दुखों से द्रवित बैठे थे.
मैं भी जा रहा था कराने पिता जी का उपचार ,बुढ़ापे में उनके दिन बचे है अब थोड़े से चार ,
और हम सब की कोशिश है की जिए दिन हज़ार। मेरे पिता जी ऊपर से स्वस्थ मगर अंदर थे कैंसर से ग्रसित,
बाकी बैठे लोग संतुष्ट है या असंतुष्ट, समझ नहीं पा रहा था मै था असमंजस में ,
क्यों की इंसानियत की नूर टपक रही थी इनके सब के चहरे के नस नस में ,
लेकिन हाव भाव थे ऐसे , जियेंगे सदियों जैसे .
इनमे से कुछ की ज़िन्दगी की शाम ढलने वाली है, लेकिन उन्हें ज़रा भी ना था मलाल ,
सब कर रहे थे एक दूजे का ख़याल , दूसरों के आँसू पोछने को निकल रहे थे कई रुमाल ,
कौन है किसका सगा कौन पराया कुछ पता ही नहीं चल रहा था ,ये बात थी कमाल ,
ये सब देख कर मै कर रहा था उनके ज़िन्दादिली को मन ही मन सलाम,
यहाँ के माहौल आपसी भाई चारा , प्यार मुहब्बत, इंसानियत से मेरी आँखें नम
,ह्रदय करुण क्रंदन कर रहा था अचानक इन सब के बीच
"टाटा मोरियल कैंसर अस्पताल आ गया ,
मैं उठा , पिता जी उठे और ....... "उठा मेरे मानस पटल पर एक झकझोरता सा सवाल" ,
क्या होता जा रहा है आज कल हमारी आने वाली पीढ़ी में कुछ लोगों के सामजिक संवेदना को ?
जिनको ,ख़ुदा ने बख्शी है पूरी नियामत ,घर परिवार से सुखी और शरीर से सलामत ,
वो क्यों हो रहे है इंसानियत से दूर और स्वार्थी ? चूर है मस्ती में नहीं मतलब किसी की भी हो अर्थी ,
क्यों वो लोग किसी की परवाह नहीं करते? उनका भी वख़्त आएगा क्यूँ नहीं डरते ?
क्यों नहीं बढ़ते हाथ एक अदद ? किसी की करने को मदद ,
कब जागेगी सहानुभूति असहायों के लिए ?
धन के नशे में चूर, पढ़े लिखे अज्ञानी ,सभ्य समाज के वासी ,
शायद ऐसे लोगों का शिष्टाचार अपाहिज हो रहा है ,
ऐ मेरे ख़ुदा मेरी आप से है दुआ ,उन बेगैरत लोगो को ,जिनको गुमाँ है अपनी नियामत पर ,
उनको दुःख का एहसास ज़रूर कराना उनकी परिभाषित इंसानियत पर ,
शायद ठीक हो जाये उन लोगो का अपाहिज शिष्टाचार।
मेरे पिता जी तो स्वस्थ हो गए लेकिन इस दुनिया रुपी ट्रेन के डिब्बे मेरी यात्रा जारी है ,मुझे इंतज़ार है उन अपाहिज शिष्टाचार वालों के ठीक होने का। llll
मेरे पिता जी तो स्वस्थ हो गए लेकिन इस दुनिया रुपी ट्रेन के डिब्बे मेरी यात्रा जारी है ,मुझे इंतज़ार है उन अपाहिज शिष्टाचार वालों के ठीक होने का। llll
सुनिल अग्रहरि
एल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल
मयूर विहार - फेस -१
नई दिल्ली -९१
मोबाइल - ७०११२९०१६१
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