*समय का रिश्ता*
बुरे वख्त से सदा डरना,
बता कर वो नही आता।
समय के चाल की आदत
घूम कर सब पर है आता ।
गले खुद से न मिल सकते,
न सर खुद अपने कंधे पर।
मिलोगे तुम गले किसके,
रखोगे सर किस कंधे पर।
हिफाज़त कर रिश्तों की,
ना दूर होना तू अपनो से।
मिलेगा ना कोई अपना,
जो चाहोगे कभी रोना।
अगर रिश्ते हों दिल से तो,
ना उनका मोल होता है।
रिश्ते रिश्ते होते है,
ना महंगा सस्ता होता है।
घड़ी सस्ती हो या महंगी,
समय को फर्क नहीं पड़ता।
अमीरों और गरीबों का,
दिन रात एक सा होता है।
फोन कितना भी ही महंगा,
बात सब एक सी होती है।
जहाज में महंगी टिकट से
दूरियां कम न होती है ।
अपनो में दिखावे का,
कोई ना काम होता है।
सब कुछ सब का होता है,
ना तेरा मेरा होता है
रिश्ते दूर हो या पास,
कोई क्या फर्क पड़ता है।
सूफी रिश्तों का तो बस
एहसास ही काफी होता है।
सुनील अग्रहरी
एहल्कान इंटरनेशनल स्कूल
दिल्ली
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