हर मुसीबत की जड़ है , भूख है इंसान की ,
तन की हो या मन की ,न बस की है भगवन की ,
जीतना दुनियां को सारे ,भूख अंग्रेजो की थी ,
देखते ही देखते वो , सारा देश खा गए ,
लालच की भूख ने ही, गद्दार पैदा किये ,
मुल्क के बदले में, हमें गुलामी दे गए ,
"वास्को " को भूख थी ,खोज नई दुनियां की ,
भूख की ज्वाला में ,वो अपना जूता ही खा गए ,
जग पे बादशाहत की, भूख थी " नेपोलियन " को ,
वाटर लू की जंग में , वो मात ही तो खा गए ,
चारा पशुवो का हो या ,शहीदों का कफ़न ,
पेड़ पर्वत खदान हो या विधवाओं का वेतन ,
ऐसे भी है नेता जिनकी भूख मिटती ही नहीं ,
खाते है एक सांस में सब ,मगर डकार लेते ही नहीं ,
भूख का रूप है ,ये घिनौनी कुरीतियाँ ,
बेटे की भूख में , मर रही बेटियां ,
जिस्म की भूख में ,रिश्ते मर मिट रहे ,
इन्सा खाने लगा, इन्सा की बोटियाँ