शुद्ध हवा फल फूलदाईनी प्रकृति ये जीवनधारा है
इनकी सेवा रक्षा करना ये कर्तव्य हमारा है
साँस की डोर हवा में बहती , इसका दम हम घोट रहे है
प्रगति के नाम पे पल पल चलते
प्रकृति का सीना छलनी करते चलाते तीर कमान ,
आलीशान महल में रहते "अली '' को हम भूल रहे है ,
पेड़ काटते खोदते धरती , करते हो माँ का अपमान ,
प्रकृति का सीना छलनी करते चलाते तीर कमान ,
आलीशान महल में रहते "अली '' को हम भूल रहे है ,
पेड़ काटते खोदते धरती , करते हो माँ का अपमान ,
मिट्टी से तुम निकले थे ,मिट्टी में मिल जाओगे ,
आये थे खली हाथ जहां में , खली हाथ ही जाओगे ,
चैन से सोया , खेला, कूदे ,जगह थी माँ गोदी ,
धरती माँ भी अपनी है , फिर उसकी आस क्यों खो दी ?
No comments:
Post a Comment