तेरी गढ़ी इस दुनियां में ,तेरी भी बोली लगती है ,
कैसी है ये दुनियां भगवान ,तुझे भी नहीं बख्शती है ,
नाम से तेरे दौलत मिलती ,सब को ऐसा लगता है ,
सबको अपने करम की मिलती ,कोई नहीं समझता है,
डर के मारे भक्ती और चढ़ावा दिखावा करते है ,
अपने आप को धोखा देते ,ढोंग को बढ़ावा देते है ,
भूखे तन में ईश्वर बसते ,कृपण मूरत ये सस्ती है ,
चंद पैसे में मिल सकती है ,पर ये तो न बिकती है ,
गरीब तन को ढकने से, भगवान् खुश हो जाते है ,
ताने दे कर उसे भगाते ,अपमान उसका करते है ,
तेरे ऊपर तेरे जल को ,भर भर लोटे चढाते है ,
प्यासे जन पक्षी और पेड़ को ,बूँद बूँद तरसाते है ,
धोखा देते अपने आप को , भ्रम भरोसा तुझ पर है ,
काम गलत खुद करते ,फिर तुझको कोसा करते है ,
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