Thursday 1 November 2012

BOLI BHAGWAN KI HINDI POEM - कविता सुनील अग्रहरि - POEM ON GOD hindi poem SUNIL AGRAHARI

      

                  

 तेरी गढ़ी इस दुनियां में ,तेरी भी बोली लगती  है ,
कैसी है ये दुनियां भगवान ,तुझे भी नहीं बख्शती है ,

नाम से तेरे दौलत मिलती ,सब को ऐसा लगता है ,

सबको अपने करम की मिलती ,कोई नहीं समझता है,

डर  के मारे भक्ती  और चढ़ावा दिखावा 
करते है ,
अपने आप को धोखा देते ,ढोंग को  बढ़ावा देते है ,

भूखे तन में  ईश्वर बसते ,
कृपण मूरत ये सस्ती है  ,
चंद पैसे में मिल सकती है ,पर ये तो न बिकती है ,

गरीब तन को ढकने से, 
भगवान् खुश हो जाते है    ,
ताने दे कर उसे भगाते ,अपमान उसका करते है ,

तेरे ऊपर तेरे जल को ,भर भर लोटे चढाते  है ,

प्यासे जन पक्षी और पेड़ को ,बूँद बूँद तरसाते है ,

धोखा देते अपने आप को , भ्रम भरोसा 
तुझ पर है  ,
काम गलत खुद करते ,फिर तुझको कोसा करते है ,

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