Thursday, 22 August 2013

टीचर्स आरती - hindi funny poem on teachers













त्व मेव   n t t ,  p r  t त्वमेव ,
त्वमेव    t  g  t ,  p g t    त्वमेव ,
त्वमेव   dr  ,   phd    त्वमेव
त्वमेव  brilliant   ,  फिसड्डी   त्वमेव

ॐ जय प्रभु , गुरु देवा। ...  2
जो तुम्हारी करे सेवा  - २
वो खाए  मेवा। …… ॐ जय। ……।

टीचिंग तुम्हारा talent
जग सारा जाने। …।प्रभु जग सारा जाने
फिर   भी  तुम्हारी  कोई x २
बात नहीं माने। ……। ॐ जय। ………


गुरु है अद्भुत प्राणी ,
वो gate duty  करे,…।प्रभु तुम   gate duty  करे
तुम हो  t  o d  में  पारंगत x २
तुम ही बस ड्यूटी करे।  ॐ जय। ………


तुम हो एक  क्लास टीचर 
तुम सब्जेक्ट टीचर ,…।प्रभु तुम  सब्जेक्ट टीचर
फिर भी  इज्ज़त जैसे  x २ 
कोई हो कैरी कैचर  ……। ॐ जय। ………


सब से ज्यदा तुम पर 
लोग रिसर्च करे …।प्रभु तुमपे  रिसर्च करे 
बड़े बड़े ज्ञानी आ कर 
तुम पर वर्कशॉप करे  ……। ॐ जय। ………


हरदम भागते रहते 
फिर भी कभी न थके ।प्रभु तुम कभी  न थके 
पैसठ  उम्र हो चाहे x २ 
फिर भी पैतीस लगे   ……। ॐ जय। ………


चाहे जैसी हो वर्कशॉप
हंसी ख़ुशी attend  करे  ।प्रभु  ख़ुशी से  attend  करे
बाहर जाकर चाहे  x २
कोसे काना फूसी करे  ……। ॐ जय। ………


जो काम कभी न किया हो
उसे भी बखूबी करे , प्रभु  उसे भी बखूबी करे
घर में चाहे आता  हुवा  x २
काम को मन करे   ……। ॐ जय। ………


mgrm   software
तुमसे घबराता , प्रभु तुमसे घबराता
जैसे कार्ड  enter    ये करते  x २
वो hang  हो जाता  ……। ॐ जय। ………


कष्ट तुम्हे तब होवे
जब छुट्टी कोई sunday  को पड़े , जब छुट्टी कोई sunday  को पड़े,
second Saturday साढ़े साती लगता  x २
जब उस दिन आना पड़े   ……। ॐ जय। ………



वो प्राणी है अभागा
जिसपे तेरी कृपा न पड़े , प्रभु जिसपे तेरी कृपा न पड़े,
तेरी ही अच्छी शिक्छा से x २
हर कोई आगे बड़े ……। ॐ जय। ………




Deshpremi kalyugi ,Poem on politics corruption and leaders poem , ,कलयुगी देश प्रेमी हिंदी कविता,

              










देश प्रेमी कलयुगी नेता तुझे शत  शत नमन 
देश की सेवा के खातिर कर चुके कितने गबन ,

जीते जिस दिन से चुनाव ,चाल टेढ़ी हो गई ,
खाल पतली थी जो पहले ,अब वो मोटी हो गई  

तुम सियासत का कभी , मौका नहीं हो चूकते ,
   धर्म को तरबूज़  जैसे ,काटते और  बांटते ,

काले धन के तुम हो स्वामी, श्वेत वस्त्र धारण करो ,
लूट कर जनता का पैसा , जेब खानदान  की भरो ,

जब भी सोचा है तो सोचा , सिर्फ अपना ही  भला ,
ढीठ और बेदर्द बन कर, दबाते जनता का गला ,

कोई चाहे मर रहा , तुम अपनी रोटी सेकते ,
मौलवी पंडित लड़ाकर ,चैन से खुद बैठते ,

तुम कुकुरमुत्ते से प्राणी हर जगह उग जाते हो ,
पार्टी का रंग कैसा भी हो ,उसमे तुम मिल जाते हो ,

गणित आप की चमत्कारी , दो  दूनी  होता है छह ,
   भ्र्स्टाचारी दुराचारी , चमचे है आगे पीछे ,

दुनियां को ठगने की तुममे , है गज़ब प्रतिभा भरी ,
खेत में ग़र सूखी घास हो ,तुमको दिखती है हरी ,

रूप अनंत महिमा अनंत , गाथा अनंत कितना कहूं ,
देश की जनता कहे के ,अब तुम्हे कितना सहूँ ,

जैसी करनी है तुम्हारी , तुम भी ना बच पाओगे 
स्वर्ग तो तुम जी चुके हो , नर्क में अब जाओगे। 











अच्छा हुवा - कविता , one side love hindi poem

    

कितना अच्छा हुवा ,कुछ ना तुमसे कहा
मन में डर है कही खो ना  दूँ  तुमको मै
सामने जब मेरे रोज़ तुम  आते हो
सोचता हूँ बयां कर दूँ हाले दिल मै

क्या ये है गुनाह ? कह नहीं पाता  मै ,
या ये है गुनाह के कुछ न कह सका
जो है मुझको पसन्द ,जो मै  करता हूँ
वो है तुमको पसन्द  ,तुम भी वो करते हो
फिर भी न जाने क्यूँ डरता हूँ कहने से
जब की सोचते है हम एक, दूजे की तरह ,
तू मेरा है भी नहीं ,फिर भी खोने का ग़म
कैसा है रे ये दिल तुझको अपना लिया ,
कितना अच्छा हुवा  ………। 
अब मिलोगी तो  तुमसे   ये कह दूंगा ,
जब मिलोगी तुम हमसे ,मै  वो कह दूंगा
इस तरह के ख्याल आते ही रहते है
आप के नाम से सवाल उठाते ही रहते है
 हम आप के  हँसी मुस्कराहट से,
अपने दिल को यूँ ही बहला लेते है
सोचता हूँ की एक दिन तुम समझ जाओगी
शायद कह दोगे तुम जो मुझे लगता है
मगर सोचते सोचते बरसों हो गए
जैसे हो परसों की बात हो  यूँ लगता है
"तुमको पाना मेरा मकसद  नहीं
मै  तो तुमको सिर्फ जीना चाहता  हूँ ",
अच्छा ही हुवा तुमने भी कुछ न कहा
इस उहा पोह में ज़िन्दगी कट जायेगी
कितना अच्छा हुवा कुछ न तुमसे कहा ………
                                                           सुनील अग्रहरि