Thursday 22 August 2013

Deshpremi kalyugi ,Poem on politics corruption and leaders poem , ,कलयुगी देश प्रेमी हिंदी कविता,

              










देश प्रेमी कलयुगी नेता तुझे शत  शत नमन 
देश की सेवा के खातिर कर चुके कितने गबन ,

जीते जिस दिन से चुनाव ,चाल टेढ़ी हो गई ,
खाल पतली थी जो पहले ,अब वो मोटी हो गई  

तुम सियासत का कभी , मौका नहीं हो चूकते ,
   धर्म को तरबूज़  जैसे ,काटते और  बांटते ,

काले धन के तुम हो स्वामी, श्वेत वस्त्र धारण करो ,
लूट कर जनता का पैसा , जेब खानदान  की भरो ,

जब भी सोचा है तो सोचा , सिर्फ अपना ही  भला ,
ढीठ और बेदर्द बन कर, दबाते जनता का गला ,

कोई चाहे मर रहा , तुम अपनी रोटी सेकते ,
मौलवी पंडित लड़ाकर ,चैन से खुद बैठते ,

तुम कुकुरमुत्ते से प्राणी हर जगह उग जाते हो ,
पार्टी का रंग कैसा भी हो ,उसमे तुम मिल जाते हो ,

गणित आप की चमत्कारी , दो  दूनी  होता है छह ,
   भ्र्स्टाचारी दुराचारी , चमचे है आगे पीछे ,

दुनियां को ठगने की तुममे , है गज़ब प्रतिभा भरी ,
खेत में ग़र सूखी घास हो ,तुमको दिखती है हरी ,

रूप अनंत महिमा अनंत , गाथा अनंत कितना कहूं ,
देश की जनता कहे के ,अब तुम्हे कितना सहूँ ,

जैसी करनी है तुम्हारी , तुम भी ना बच पाओगे 
स्वर्ग तो तुम जी चुके हो , नर्क में अब जाओगे। 











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