… सहेजता हूँ ... (० ९ /१० /२०१४ )
ये कविता मेरी बेटी "ओलिव "जैसी सभी बेटियों के माता पिता को समर्पित है , कुछ बातें निःशब्द होती है
जिसको सभी माता पिता सिर्फ महसूस कर सकते है और कुछ बातों के लिए मुझको शब्द मिल गये जिससे मेरी ये कविता बन गई ।
ना जाने कब उसकी यादों में जीना पड़े ,
निराशा का घेरा , निशा सा अँधेरा ,
किरण आशा बन आई , रौशन सवेरा ,
टूटे खिलौनों की जागीरों का कुनबा है अब तक ,
बेवक़्त शोर भोंपू का कानों में है अब तक ,
रो कर आधी रातों में बिस्किट मांगना ,
आधा खाना फिर आधा पाऊडर बनाना ,
रोते रोते गिरना और गिर कर के हँसना ,
आँचल में माँ के छुपना छुपाना ,
ज़िद कर के बाते अपनी मनवांना
तोतली जुबां से शिकायतें लगाना ,
पीछे पीछे पापा की पूँछ बन टहलना ,
मेरी एक टॉफी से उसका बहलना ,
रूह खुश होती थी उसकी मुस्कराहट से ,
रोना उसको आता था मेरी जाने की आहट से ,
वो जाना पहली बार स्कूल उसका ,
छोटे से कन्धे पर लटकता भारी बस्ता ,
बेवजह सवालों की होती थी बारिश ,
उसकी यादों के घरौंदों का मैं हूँ इकलौता वारिस ,
क्या क्या बताऊँ क्या क्या संजोता हूँ
उसके हर एक लम्हे को माले में पिरोता हूँ
होगी उसकी विदाई एक दिन मन मन ही रोता हूँ ,
करूँगा कन्या दान ये सोच के खुश होता हूँ ,
सहेजता हूँ ....... ..........
aankhe bhar aayeen bhai !Maa kehti thi betiyaan raje bhi naa rakh paye, to hum kyaa cheez hain.
ReplyDeletePar jab bhagwaan hamaare chehre par ek muskaan laana chata hai to beti bhejtaa hai. Bahut pyaari aur masoom kavitaa hai....
��beautiful lines with warm feelings.....actually children are the reason to be happy and fulfilled and daughter s make us complete
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