Wednesday, 4 November 2015

Poem on zindagi , jiwan BACHPANA POEM BY SUNIL AGRAHARI - POEM ON CHILDHOOD -बचपना

******बचपना****** ०५/११/२०१५

हार्दिक आभार आदरणीय सुनीता राजीव जी को ,इस कविता की प्रेरणा स्रोत बनने के लिए। 

उम्र ना वापस मिली किसी को ,
जीवन की सच्चाई है ,
कुछ तो बचपना जी लेने दो  ,
बचपन की  याद आई है,
कुछ तो बचपना जी ....... 

देख गुब्बारे मेले में ,
बचपन फिरकी सा याद आया ,
आज फिर गुब्बारे से खेलने दो ,
मुझे शर्म हया ना आई है ,
कुछ तो बचपना जी ....... 

गली के पास छोटी सी दुकान ,
दस पैसे में टॉफी दो चार ,
चूस चबा कर खाने को ,
जुबां मेरी ललचाई है ,
कुछ तो बचपना जी ....... 

अपनी मिठाई छुपा कर खाना ,
बहन का हिस्सा चुरा कर खाना ,
फिर चाट मलाई खाने को ,
बचपन ने ली अंगड़ाई है ,
कुछ तो बचपना जी ....... 

स्कूल के बाहर चूरन खाना ,
चलते दौड़ते लंगड़ी  लगाना ,
फिर नंगे पैर दौड़ लगाने को ,
बचपन ने  याद दिलाई है ,
कुछ तो बचपना जी ....... 


छोटी सी बात पे आंसू बहाना ,
माँ के अंचल में छुप जाना ,
माँ बाप की शिक्षा याद करूँगा ,
जो बचपने में मुझे सिखाई है ,
कुछ तो बचपना जी ....... 



Sunday, 1 November 2015

Poem on bewafai , VARNA HINDI POEM - POEM ON TRUST - SUNIL AGRAHARI

 

*****वर्ना *****३० /१०/२०१५ 

ना करो दिल से वफ़ा की दुआ ,
वर्ना पाओगे बेवफाई ही ,

प्यार तो होता है जुदा होकर ,
वर्ना मिलना तो रस्मअदाई ही ,

जिस्म का चैनों सुकून आग में बसा ,
वर्ना ठंडक  तो है सच्चाई  ही ,

इश्क़ करना तो बस हुनर समझो ,
वर्ना है भरोसा आजमाइश ही ,

जारी रखना इश्क में हंसना ,
वर्ना आम है इश्क़ में रुलाई ही ,

क्यूँ तड़पता है न तड़प प्यार में ऐ दिल ,
वर्ना मिलती  है , तन्हाई  ही ,


Poem on bewafai , KAH GAYA HINDI POEM ,कह गया SUNIL AGRAHARI


***कह गया ***३०/१०/२०१५/

दिल की खामोशियाँ कह रही 
दर्द का परिन्दा उड़ गया ,

दिल का अखबार कह रहा ,
चर्चा तेरे नाम का जुड़ गया ,

लहू का उबाल कह रहा ,
दिल का ग़ुबार रहा गया ,

इप्तदा इबादत की कह रही 
बुत वो ख़ुदा सी गढ़ गया 

नम आँखों से अब्र कह रहा ,
आश्ना बिन मिले ही बढ़ गया ,

इश्क़ की खलिश दिल से कह रही 
वो तो जुर्माना दिल पे मढ़ गया ,

ग़ुबार ----धुंध 
इप्तदा ---शुरुआत 
इबादत---पूजा 
अब्र ---बादल 
आश्ना ---दोस्त 
खलिश ---चुभन