******बचपना****** ०५/११/२०१५
हार्दिक आभार आदरणीय सुनीता राजीव जी को ,इस कविता की प्रेरणा स्रोत बनने के लिए।
उम्र ना वापस मिली किसी को ,
जीवन की सच्चाई है ,
कुछ तो बचपना जी लेने दो ,
बचपन की याद आई है,
कुछ तो बचपना जी .......
देख गुब्बारे मेले में ,
बचपन फिरकी सा याद आया ,
आज फिर गुब्बारे से खेलने दो ,
मुझे शर्म हया ना आई है ,
कुछ तो बचपना जी .......
गली के पास छोटी सी दुकान ,
दस पैसे में टॉफी दो चार ,
चूस चबा कर खाने को ,
जुबां मेरी ललचाई है ,
कुछ तो बचपना जी .......
अपनी मिठाई छुपा कर खाना ,
बहन का हिस्सा चुरा कर खाना ,
फिर चाट मलाई खाने को ,
बचपन ने ली अंगड़ाई है ,
कुछ तो बचपना जी .......
स्कूल के बाहर चूरन खाना ,
चलते दौड़ते लंगड़ी लगाना ,
फिर नंगे पैर दौड़ लगाने को ,
बचपन ने याद दिलाई है ,
कुछ तो बचपना जी .......
छोटी सी बात पे आंसू बहाना ,
माँ के अंचल में छुप जाना ,
माँ बाप की शिक्षा याद करूँगा ,
जो बचपने में मुझे सिखाई है ,
कुछ तो बचपना जी .......