*****चिटकती रात *****
आज की रात कुछ चिटक सी गई थी ,
रात के अंधरेपन में
कुछ दरारें सी दिख रही थी ,
पलकें आसपास होकर भी
एक दूजे से जुदा सी लग रही थी ,
ज़ुबां की नमी भी अब
रेगिस्तान सी सूखी महसूस हो थी ,
मेरे अल्फ़ाज़ उस रेत में
फंसे धंसे से लग रहे थे ,
उस सन्नाटे में मेरी रूह ज़ोर ज़ोर
से अजान दे रही थी,
मगर सुनने वाला कोई नहीं था यहाँ ,
ख़ामोशी में डूबा था सारा जहाँ ,
किससे करुँ अपने हालात बयां ,
बेकाबू घोडा सा हो रहा था समां ,
लगाम मेरे हाथों से छुटी जा रही थी ,
बेलगाम सी ज़िन्दगी हुई जा रही थी ,
मेरे गीत लग रहे थे जैसे रुदाली ,
भरे हुए प्याले लग रहे थे खाली ,
उलझनों के सैलाब में
डूब रहा था सारा मंज़र ,
हर एक करवट चुभ रहा था जैसे खंज़र ,
अब रात के सियाही में
फीकापन आ रहा था ,
गीली आँखों में अब सूखपन सा छा रहा था ,
आँखे ढूंढ रही थी सूरज की रोशनी को ,
बेताब थी पलके रात के पल समेटने को ,
किसी की आँखों में आस भर सकूं ,
ख़ामोशी की चारदीवारी में शोर भर सकूं ,
मेरी ईद के रोज़े को इंतज़ार है इफ़्तार का ,
ठहरी हुई ज़िन्दगी को इंतज़ार है रफ़्तार का ................