Saturday 2 July 2016

Poem on zindagi , CHITAKTI RAAT BY SUNIL AGRAHARI - poem on night-चिटकती रात

*****चिटकती रात ***** 

आज  की रात कुछ चिटक सी गई थी ,
रात के अंधरेपन में 
कुछ दरारें सी दिख रही थी ,
पलकें आसपास होकर भी 
एक दूजे से जुदा सी लग रही थी ,
ज़ुबां की नमी भी अब 
रेगिस्तान सी सूखी  महसूस हो थी ,
मेरे अल्फ़ाज़ उस रेत में 
फंसे धंसे से लग रहे थे ,
उस सन्नाटे में मेरी रूह ज़ोर ज़ोर  
से अजान दे रही थी,
मगर सुनने वाला कोई नहीं था यहाँ ,
ख़ामोशी में  डूबा था सारा जहाँ ,
किससे करुँ अपने हालात बयां ,
बेकाबू घोडा सा हो रहा था  समां ,
लगाम मेरे हाथों से छुटी जा रही थी ,
बेलगाम सी ज़िन्दगी हुई जा रही थी ,
मेरे गीत लग रहे थे जैसे रुदाली ,
भरे हुए प्याले लग रहे थे खाली ,
उलझनों के सैलाब में 
डूब रहा था सारा मंज़र ,
हर एक करवट चुभ रहा था जैसे खंज़र ,
अब रात के सियाही  में 
फीकापन आ रहा था ,
गीली आँखों में अब सूखपन सा छा रहा था ,
आँखे ढूंढ रही थी सूरज की  रोशनी को ,
बेताब थी पलके रात के पल समेटने को ,
किसी की आँखों में आस भर सकूं ,
ख़ामोशी की चारदीवारी में शोर भर सकूं ,
मेरी ईद के रोज़े को इंतज़ार है इफ़्तार का ,
ठहरी हुई ज़िन्दगी को इंतज़ार है रफ़्तार का  ................  

२४ /०६/२०१६ - २ बजे रात 



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