मॉरीशस
प्रकाशित-आक्रोश पत्रिका
मार्च अप्रैल 2017
****संगीत ****
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में ,
मैं हूँ सन्नाटे में , हूँ शोर में ,
मैं हूँ ख़ुशी में , मैं हूँ ग़म में ,
दीदार नहीं मेरा , रहता हूँ ग़ुम मैं ,
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में..........
पंछियों के पंख ,फड़फड़ाहट के ताल में ,
लहरों के नृत्य कलरव,सागर नदी ताल में ,
बरसात की छोटी बड़ी ,बूंदों के ताल में ,
भूत हो भविष्य या , वर्त्तमान काल में ,
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में............
इन्सानों के स्वभाव में ,शब्दों के रसभाव में ,
सूरज की पहली ,किरण की अहसास में,
रात दिन चारों ,प्रहर के आभास में ,
जीवन के हर क्षण , सुरीले एहसास में ,
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में.............
ख़ुदा के पास में , इबादत की आस में ,
सुन कर सुरीले गीत ,बन जाते हैं मेरे मीत ,
जी हाँ ,जी हाँ ,जी हाँ ,जी हाँ
मैं हूँ संगीत मैं हूँ संगीत मैं हूँ संगीत
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में................
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