Wednesday 17 January 2018

POEM ON POLITICS, SIYASAT KI RAANI --SUNIL AGRAHAI-सियासत की रानी


***सियासत की रानी ***

सियासत की रानी तुम, बड़ी बेरहम ,
करती हो धोखा , दे के भरम ,

हमें हर घड़ी  अब , डर  है तुम्हारा ,
तुम्हारे बिना अब ना ,जीना गुजारा ,
ना जाने किसके कब ,फूटे करम ,
सियासत की रानी तुम बड़ी बेरहम।

नेता जी की जेब में , घर है तुम्हारा ,
अनपढ़ दलालों को , देती हो सहारा ,
बहस चाय चर्चा पे ,गरमा गरम, 
सियासत की रानी तुम बड़ी बेरहम ,

गिरगिट का रंग भी,अब तुमसे हारा ,
रंक हो या राजा कोई, सगा ना तुम्हारा ,
बंटा धार करती , हो कोई भी धरम ,
सियासत की रानी तुम बड़ी बेरहम।      

१८/०१/२०१८ 








Tuesday 9 January 2018

Rubaru-Reflation yourself POEM BY SUNIL AGRAHARI -रूबरू

****रूबरू ****  ****








मेरे मित्रों , बूट कैंप जाने से पहले  मन में एक कौंध थीऔर वापस आने के बाद एक नया तज़ुर्बा  जो शायद सब के मन में है , मेरी ये कविता उसी को बयां करने की कोशिश है ,आप अपने ख्याल comment box में लिखें ,जो की मेरी कविता से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है।               

वहाँ क्या होगा  ? I Discover I-2 कैसा होगा ?
शायद नई ज़मीं होगी, नया आसमाँ होगा ,
इक नई सोच होगी , एक नया अनुभव होगा ,
कुछ पुरानी सोच ,वहीँ छोड़ कर आना होगा ,
कुछ नये ख़याल ज़िन्दगी के , वहां से लाना होगा,
निजी ज़ज़्बातों को , यही छोड़ कर जाना होगा ,
ज़िन्दगी में कुछ नया करने के लिए ,
घर से बाहर तो जाना ही होगा,
अच्छा तो करते है,अब कुछ नायाब करना होगा, 
करने हैं जो काम, उसे समयबद्ध करना होगा ,
रहता हूँ अपनों संग ,
अब खुद को ढूंढने जाना होगा ,
वख़्त है बहुत कम सुनील ,
अपनी सोच को थोड़ा तो बदलना होगा,
कुँए के मेंढक को ,अब बाहर आना होगा,
ठहरे से दरिया में ,कंकड़ मारना होगा,
अलसाई सी सुबह को नींद से जगाना होगा,
ख़ुद को ख़ुद से रूबरू कराना ही होगा,
I Discover I-2 के लिए मेरे दोस्त ,
नूंर महल तो आना ही होगा,
तभी तो ये "ख़ुद ", इक नायाब इंसा होगा। 



                                                                         सुनील अग्रहरि 10/01/2018