Sunday 4 November 2018

Poem on kisaan , Bada juaari , POEM ON CORRUPTION -बड़ा जुआरी







Published in Mauritius 
Magazine - Akrosh 
February 19

हाँ जुआरी हूँ मैं , सब से बड़ा जुआरी ,
बरसात से जुआ खेलता हूँ ,
अपनी पहली ही चाल में 
पत्नी के मंगलसूत्र गिरवी रख 
सब कुछ पसीने की बूँद के साथ 
खेत मिटटी की बिसात पर 
बड़ी मेहनत से डाल आता हूँ, 
फिर बरसात की चाल का 
करता हूँ इंतज़ार,
हारता हूँ मै पांडवों की तरह, 
बरसात करती है मेरा चीरहरण 
दुस्साहसन की तरह,
लाज अपनी बचाने को 
करता हूँ कृष्ण का इन्तज़ार ,
लेकिन आती है तो सिर्फ मौत ,
वो भी एक अन्नदाता की ,
एक भारतीय किसान 
मरते मरते सोचता है ,
ऐ सुनील  ..... 
काश मेरे भी मामा शकुनि होते 
बैंक का क़र्ज़ रफ़ा दफ़ा कर देते 
खेत मेरा भी लहलहाता ,
कमज़ोर ,बुज़दिल ,भिखारी अन्नदाता 
मैं नहीं ,इज़्ज़तदार किसान कहलाता। .........        ०५/११/२०१८


No comments:

Post a Comment