Thursday 10 October 2019

NIDAN GEET निदान गीत- BY SUNIL AGRAHARI

 ******NIDAN ANTHEM*****

          SELF MOTIVATIONAL SONG IN HINDI 

                                    

                                      

  *****निदान गीत *****

आओ करे शुभ काज , छोड़े कदमो के निशान 
हल मुश्किलों का ढूढें , और उनका करे निदान 

प्यारे से इस जीवन के सुख दुःख दो मेहमान 
 सुख तो खुशियां देता है दुख लेता इम्तहान 

संस्कृति  की इस धरती पर करे शोध अनुसंधान 
 बोये ज्ञान विज्ञान का बीज ,बने शिक्षा के किसान 
हर पल निज खुशियों के खातिर जीता है इंसान 
आओ जिए औरों के खातिर ,करें समाज उत्थान 

मानवता जीवित  रहे सब हों एक सामान 
जन जन भागिदार हों,सफल करें अभियान 



Thursday 3 October 2019

POEM ON SINGLE USE PLASTIC IN HINDI

  






POEM ON SINGLE USE PLASTIC IN HINDI

*****प्लास्टिक का रावण*****

प्लास्टिक का रावण तब ही मरेगा 
जब इंन्सा इसका विभीषण बनेगा 
हमी ने बुलाया हमी ने बैठाया
प्रदूषण का रावण हमने बनाया 
धीरे धीरे प्लास्टिक सब में समाया 
सारी दुनिया में अब पैर है जमाया 

जीने की खातिर क्या कर दिया
जहर को हमने अमृत समझ लिया
हमारा ही वंश कल को आएगा 
प्रदूषण से जान मुश्किल में पाएगा 
पहले भी तो हम तुम रहते ही थे 
ज़रूरतें सारी  पूरी हम करते ही थे
आओ हम रहे जिए पहले जैसे 
मुश्किल होगी पर रह लेंगे ऐसे वैसे

गलती तो हम तुम, कर ही चुके है 
प्लास्टिक के मेहमान घर ला चुके है 

ये दुनिया मिटटी में मिल जाएगी 
प्लास्टिक की दुनिया रह जायगी





Wednesday 2 October 2019

poem on drugs, ANDAZE NASHA , अन्दाज़े नशा POEM BY SUNIL AGRAHARI

 poem on drug addiction in hindi 

    



Published in Jankari kaal , magazine November 2021 

*****अन्दाज़े नशा *****

   दुर्दशा है जीवन की नशे की दिशा    
   उजाला है जीवन ना लाओ निशा 

  ज़िल्लत की मौत नशे से क्यूँ मरे
 बदल दें हम अपनें अन्दाज़े नशा 

 मुश्किल से कितने ये नर तन मिला 
 ना मारो इस रूह को कर के नशा 

मादक हो लत तो इन्सा खुद मरता है 
आओ हम करें मकसद जीने का नशा 
  
  है कितने ही दुनिया में पिछड़े यहाँ 
 आओ सब की तरक्की का कर लें नशा 

 नफरतों के नशे से क्यों बर्बाद हो 
आओ हम करे भाईचारे  का नशा 

इस जहाँ में  रुगबत तलब हर जगह 
ग़ुरबत मिटाने का आओ कर ले  नशा 

फैला है चहुँ ओर आतंक अन्याय  
आओ हम करें इंसानियत का नशा 

 ज़ाहिल  न जाने ही कितने यहाँ  
 आओ फैलायें हम इल्म  का नशा 

   लत नशे से बचे , रोक ले औरों को 
  आओ मिल कर सुधारें दुनियाँ की दशा  



सुनील अग्रहरि 

एलकोन इंटरनेशनल स्कूल 
मयूर विहार - फेज -१ 
दिल्ली -९१  

रुगबत -भूख  ,
तलब -प्यास -तृष्णा
ज़ाहिल- अनपढ़ 
मादक - नशीला 

POEM ON DRUG ADDICTION     

 POEM ON NASHA MUKTI