"किस्मत न बदली"
सत्ता कुर्सी का परिवर्तन,
हो गई अदला बदली,
बदल गई सरकारें पर,
लोगो की न किस्मत बदली।
बदल गए शहरो के नाम ,
पर ज़ुबां शहर की न बदली,
बदल गए गलियों के नाम ,
पर जनता न बदली ।
खेल में अदला बदली के,
जाने कितनी पीढ़ियां बदली,
झंडे वोटर तक बदल गए ,
पर उनकी सियासत न बदली।
हर बार चुनावी भाषण में
नेताओं की भाषा बदली,
भ्रम करते असली नकली में,
झूठी फितरत न बदली।
बस आई गई सरकारें और,
नेताओं की कारें बदली,
जनता ठन ठन गोपाल रही ,
नेताओं की नियत न बदली ।
सुनिल अग्रहरि