ये कविता जानकारी काल" पत्रिका में अप्रैल 2023 प्रकाशित हुई है।
*बुढ़ापा*
उमर तुमने चाहे गुजारी हो कैसे,
दुनियां को देखा हो चाहे भी जैसे,
बुढ़ापा जो बीते अच्छा तुम्हारा ,तो
कर्म नेक तुमने किया होगा समझो ।
जवानी में सूरमा भले चाहे होगे ,
पहाड़ों को रेत किया होगा तुमने ,
बीमारी बिना गर बुढ़ापा जो बीते ,तो
करम नेक तुमने किया होगा समझो ।
भले लाखों जिंदगी हो तुमने बसाई,
भले कितनी दौलत हो तुमने कमाई ,
इज्जत से उतरे निवाला हलख से ,तो
करम नेक तुमने किया होगा समझो ।
पढ़ाया हो बच्चों को चाहे ही कितना ,
लुटाई हो दौलत उनपे चाहे जितना ,
औलादे गर तुमपे सब कुछ लुटा दे ,तो
करम नेक तुमने किया होगा समझो ।
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