Saturday 27 April 2024

alag hindi poem @sunilagrahari




*****अलग***** 

आज कल सब को सब कुछ अलग चाहिए,
घर में बच्चो को , मेहमानो को ,बहू बेटो को ,
बहार वाले गार्ड को अंदर वाले चपरासी को ,
बॉस के पी ऐ को ऑफिस में बाबू को 
                                                           कमरा अलग चाहिए .

बस के कंडक्टर को ट्रेन के टी टी को 
घाट  के पंडित को , बैंक के कैशियर को ,
हॉस्पिटल  के डॉक्टर  को ,थाने में इंस्पेक्टर को, 
बैठने की सीट अलग चाहिए .
भगवन के दर्शन को ,भीड़ में  खड़े भक्तों को ,
बाबा जी के भक्तों को , भंडारे खाने वालों को 
लाइन से अलग  जगह चाहिए। 

क्या क्या कहूं किसको क्या चाहिए 
मुझे लिखने को बहुत से शब्द चाहिए 
कहने पे सबकुछ बवाल  चाहिए
पढ़ने सुनने वालो को सयंम चाहिए 
बस थोड़े में आप को पूरा समझाना चाहिए 








Tuesday 16 April 2024

RANG POEM IN HINDI - sunil agrahari

 

*** हैरत ए रंग*** 

इंसानी और कुदरती रंग का करिश्मा 













रंग भी हैरत  में  इंसा से ,
कैसी इंसा की फितरत है। 

रंगों से ज्यादा खुद बदले , 
कैसी इंसान की हरकत है 

गिने  चुने हम रंगों का 
छोटा सा अपना कुनबा था। 

अपने रंगो के वज़ूद से 
कभी न कोई शिकवा था।  

मिला जुला हम रंगो को ,
कितने ही रंग बना डाले। 

इनकी अपनी शिरकत से ,
रंगो पे दाग लगे काले। 

हर रंग संग रंग बदल गए ,
मलाल नहीं खामोश रहे।

हर रंग संग हम गले मिले ,
नफ़ा नुकसान से परे रहे। 

पर कमाल है इंसानो का            
हमसे ज्यादा रंग इनके है। 

टक्कर गिरगिट और रंगों में  
वो इनसे पीछे छूट गए ।

इंसा के ऐसे बदलने से ,
मौसम हैरत में आ गया। 

जूनून अजब बेचैनी है 
जाने क्या ये कर डालें। 

शुक्र है इनका बस न चले ,
वर्ना ईशर ये  बदल डालें । 

हर नफ़े में रंग इंसा बदले ,
बेवजह  रंग  बदनाम हुए।