Tuesday, 16 April 2024

RANG POEM IN HINDI - sunil agrahari

 

*** हैरत ए रंग*** 

इंसानी और कुदरती रंग का करिश्मा 













रंग भी हैरत  में  इंसा से ,
कैसी इंसा की फितरत है। 

रंगों से ज्यादा खुद बदले , 
कैसी इंसान की हरकत है 

गिने  चुने हम रंगों का 
छोटा सा अपना कुनबा था। 

अपने रंगो के वज़ूद से 
कभी न कोई शिकवा था।  

मिला जुला हम रंगो को ,
कितने ही रंग बना डाले। 

इनकी अपनी शिरकत से ,
रंगो पे दाग लगे काले। 

हर रंग संग रंग बदल गए ,
मलाल नहीं खामोश रहे।

हर रंग संग हम गले मिले ,
नफ़ा नुकसान से परे रहे। 

पर कमाल है इंसानो का            
हमसे ज्यादा रंग इनके है। 

टक्कर गिरगिट और रंगों में  
वो इनसे पीछे छूट गए ।

इंसा के ऐसे बदलने से ,
मौसम हैरत में आ गया। 

जूनून अजब बेचैनी है 
जाने क्या ये कर डालें। 

शुक्र है इनका बस न चले ,
वर्ना ईशर ये  बदल डालें । 

हर नफ़े में रंग इंसा बदले ,
बेवजह  रंग  बदनाम हुए। 

No comments:

Post a Comment