*** हैरत ए रंग***
इंसानी और कुदरती रंग का करिश्मा
रंग भी हैरत में इंसा से ,
कैसी इंसा की फितरत है।
रंगों से ज्यादा खुद बदले ,
कैसी इंसान की हरकत है
गिने चुने हम रंगों का
छोटा सा अपना कुनबा था।
अपने रंगो के वज़ूद से
कभी न कोई शिकवा था।
मिला जुला हम रंगो को ,
कितने ही रंग बना डाले।
इनकी अपनी शिरकत से ,
रंगो पे दाग लगे काले।
हर रंग संग रंग बदल गए ,
मलाल नहीं खामोश रहे।
हर रंग संग हम गले मिले ,
नफ़ा नुकसान से परे रहे।
पर कमाल है इंसानो का
हमसे ज्यादा रंग इनके है।
टक्कर गिरगिट और रंगों में
वो इनसे पीछे छूट गए ।
इंसा के ऐसे बदलने से ,
मौसम हैरत में आ गया।
जूनून अजब बेचैनी है
जाने क्या ये कर डालें।
शुक्र है इनका बस न चले ,
वर्ना ईशर ये बदल डालें ।
हर नफ़े में रंग इंसा बदले ,
बेवजह रंग बदनाम हुए।
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