राम को देख
राम को देख कर के जनक नंदिनी
बाग़ में वो खड़ी की खड़ी रह गई ,
राम देखे सिया माँ सिया राम को
चारों अंखिया लड़ी की लड़ी रह गई..
थे जनकपुर गए, देखने के लिए
सारी सखियाँ ,झरोखों से झाकन लगी ,
देखते ही नज़र , मिल गई प्रेम की
जो जहाँ थी ,खड़ी की, खड़ी रह गई..
बोली है एक सखी, राम को देख कर
रच दिए है विधाता ने ,जोड़ी सुघड़
पर धनुष कैसे तोड़ेंगे वारे कुवँर
मन में शंका बनी की बनी रह गई..
बोली दूजी सखी ,छोट देखन में हैं
पर चमत्कार इनका नहीं जानती
एक ही बाण में ताड़िका राक्षसी
उठ सकी न, पड़ी की पड़ी रह गई
तीन दिन तक तपस्या की रघुबीर ने
सिंधु जाने रास्ता न उनको दिया
ले धनुष राम जी ने, की जब गर्जना
उसकी लहरेँ , रुकी की रुकी रह गई .
translated by sunil agrahari
writer - unknown
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