Monday, 22 September 2025

mahakumbh | ek katah @sunilagrahari












144 वर्ष उपरान्त , महाकुम्भ अमृत प्रकट हुआ 
माँ गंगा के आँचल में ,भक्तो का कल्याण हुआ 

मन मस्तिष्क में भक्तो के पावन ऊर्जा दौड़ रही  
मीलों कोसो दूर से माँ की श्रद्धा बुला रही 

दिन रात चले पर थके नहीं ,प्राण गए पर रुके  नहीं 
बोझ लिए पर झुके नहीं , उत्साह ज़रा भी थमे नहीं 

एक महीने कुम्भ के मंथन में , हुई पक्ष विपक्ष  में तना तानी 
लेकिन प्रयाग की धरती पर , बढ़ रहे थे हर पल सनातनी 

लाखो लोगों ने ध्यान दिया , तब करोडो का स्नान हुआ 
आस्था के इस सागर  में , माँ गंगा का सम्मान हुआ 

बच्चे बूढ़े और जवान , हाथों कन्धों पर लिए सामान 
बढ़ रहे थे जैसे वीर जवान , सब का लक्ष्य संगम स्नान 

क्या कहूं मैं अपनी किस्मत को, सोच समझ न कुछ पाया
प्रयाग में पैदा होकर भी , महा कुम्भ प्रवेश ना कर पाया 

इस पाप पुण्य के मेले में , मेरा जाने क्या परिणाम आया 
वृद्ध माता की सेवा से , खुद को न अलग मैं कर पाया ,

माँ गंगा मुझे माफ़ करे 





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