नारी
जिस नारी की पूजा की
देवों मानव ने मिलकर ,
आज उसी नारी के आगे
खड़ा मनुष्य दानव बन कर ,
कली सी बच्ची फूल बनी जब ,
घर में आफत आई ,
कैसे होगी शादी इसकी ,
कैसे होगी सगाई ,
दहेज़ की चिन्ता में जल कर ,
करते थे दिन रात बसर,
आज उसी नारी के आगे
खड़ा मनुष्य दानव बन कर ...............
गहने बेचे मां ने अपने ,
की बेटी की सगाई
खेत के संग जब घर भी बेचा ,
रकम दहेज़ की आई
दहेज़ का दानव अब भी प्यासा ,
कहाँ से लाऊ सागर ,
आज उसी नारी के आगे
खड़ा मनुष्य दानव बन कर .............
बचपन में, मां, बाबा बोली ,
मिश्री सी घुल जाती थी ,
चाँद का टुकड़ा सब को प्यारी ,
घर की राजदुलारी थी ,
टूट पडा क्यों उसके ऊपर ,
किस्मत का खामोश कहर ,
आज उसी नारी के आगे
खड़ा मनुष्य दानव बन कर ..............
छोड़ चली बाबुल की गलियां ,
आज चली है पीहर ,
बूढ़ा पीपल देख रहा है ,
रोता है सब नैहर ,
घर के कोने खुश और सहमे ,
चुप कैसा है मंज़र ,
आज उसी नारी के आगे
आज उसी नारी के आगे
खड़ा मनुष्य दानव बन कर .................
सच कहा है...............
ReplyDeleteशब्द बड़ा गहरा है भाई ,कहते जिसको नार ,
नीर बहाए मन ही मन में , न वो आर न पार...............
sir kya baat hai!!! apki soch bahut achhi hai aur gehri bhi!!! sir apko iske liye National award milna chahiye... sir apko na ye poems publish karna chahiye!!!!
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