Monday 1 October 2012

Naari hindi kavita नारी - कविता सुनील अग्रहरि , naari poem for women's , poem kavita for women's day

          

           नारी
जिस नारी की पूजा की 
देवों मानव ने मिलकर ,
आज उसी नारी के आगे 
खड़ा मनुष्य दानव बन कर ,


कली सी बच्ची फूल बनी जब ,
घर में आफत आई ,
कैसे होगी शादी इसकी ,
कैसे होगी सगाई ,
दहेज़ की चिन्ता में जल कर ,
करते थे दिन रात बसर,
आज उसी नारी के आगे 
खड़ा मनुष्य दानव बन कर ...............

गहने बेचे मां ने अपने ,
की बेटी की सगाई 
खेत के संग  जब घर भी बेचा ,
रकम दहेज़ की आई 
दहेज़ का दानव अब  भी प्यासा , 
कहाँ से लाऊ सागर  ,
आज उसी नारी के आगे 
खड़ा मनुष्य दानव बन कर .............

बचपन में, मां,  बाबा बोली ,
मिश्री सी घुल जाती थी ,
चाँद का टुकड़ा सब को प्यारी , 
घर की राजदुलारी थी ,
टूट पडा क्यों उसके ऊपर ,
किस्मत का खामोश कहर ,
आज उसी नारी के आगे 
खड़ा मनुष्य दानव बन कर  ..............

छोड़ चली बाबुल की गलियां ,
आज चली है पीहर ,
बूढ़ा  पीपल देख रहा है ,
रोता है सब नैहर ,
घर के कोने खुश और सहमे , 
चुप कैसा है मंज़र ,
आज उसी नारी के आगे 
खड़ा मनुष्य दानव बन कर  .................

2 comments:

  1. सच कहा है...............
    शब्द बड़ा गहरा है भाई ,कहते जिसको नार ,
    नीर बहाए मन ही मन में , न वो आर न पार...............

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  2. sir kya baat hai!!! apki soch bahut achhi hai aur gehri bhi!!! sir apko iske liye National award milna chahiye... sir apko na ye poems publish karna chahiye!!!!

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