Sunday 30 September 2012

mutthi ki ret - कविता सुनील अग्रहरि - मुट्ठी की रेत overconfident , rays of hope sunil agrahari

            


बंद मुट्ठी की रेत  की तरह धीरे धीरे 
चला गया सब कुछ ,
हमें लगा की हमारे हाथ में अभी है बहोत  कुछ ,
मुट्ठी खोला तो लगा ,
सब जो मेरे पास था,वो एक गुम  तारे की तरह 
 इतिहास बन गया था ,
मै घबराया,हड़बड़ाया ,तन बदन में बिजली सी कौन्ध गई 
और तब महसूस हुवा, की मै तो अतीत में जी रहा था ,
हाय कितना पीछे रह गया था ........
उन सभी चीज़ों से ,
जिनको आज ख्वाब में भी  देखने के लिए
कई बार गहरी नींद में सोना पड़ेगा ,
उस पर ये नहीं भरोसा की ,ख्वाब में  देख ही लेंगे 
और उस  एक ख्वाब के लिए ,बचे हुवे वक्त से 
न चाहते हुवे भी शेष रातों  को यूँ ही गवाना पड़ेगा ,

क्या इसी तरह बोझिल थके हुवे से अपने वक्त को
बदलने में हम कामयाब होने की बात सोचते है .....?
लगता है ऐसा की हम उन परछाइयों को पकड़ने की 
कोशिश कर रहे है,
जो हाथ नहीं आती सिर्फ दिखाई देती है ,
क्या कभी मुट्ठी की  रेत ,मुट्ठी में वापस आई है ?
गुजरे हुवे वक्त से ,अपने बीते पल वापस मिलेगे ?
कैसी वाहियात बाते सोच रहा  हूँ मै .......
बीते पल, किसको वापस मिले है 
जो आज मै पाना चाहता हूँ ....
मुझे लगता है ,मै अपने दिल को झूठी तसल्ली दे रहा हूँ ,
मन को अँधेरे में रख कर ,
कोशिश कर रहा हूँ ,निकले हुवे आंसू को,
 वापस आँख में भेजने  की ,
पत्थर को मोम , और दिन में चाँद देखने की ,
ऐसा न कभी हुवा है, और न होगा ,
डर लगता है इस ज़िन्दगी की भीड़ में कहीं खो  न जाऊ,
बिछड़ जाऊ अपनों से ,रह जाऊ तान्हा,
आज एक हाथ की तलाश की है ......
जो मुझे वापस लाये, उस अँधेरी काल कोठारी से ,
जिसने मुझे जकड रखा है नागपाश की तरह 
और निकाले मेरे दिमाक से उस नाकाम कोशिश को 
जो मेरे दिमाक ने ठान रखी है
रेत को पेर कर  तेल निकालने की  ,
समझाये हकीकत ज़िन्दगी की ,
मदद करे गुम हो चुकी चीज़ों को भूलने की ,
कुछ नया करने की  ,हिम्मत ,लगन ,विश्वाश , दे ,
मेरी मुट्ठी में रेत नहीं , आशा की नई शक्ति दे ..और ..साथ का अहसास दे ...............



















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