Wednesday 12 September 2012

kora kagaz hindi kavita - love affection , jazbzzt sunil agrahari

***कोरा कागज़***
मैंने एक कोरे कागज़ को तड़पते देखा ,
उसकी तड़प भी जायज़ थी ,
उसकी चाहत थी उसपे 
कोई कलम ऐसी चले ,
जो लिखे हंसी  जज़्बात 
या बने तस्वीर जिसकी हो औकात ,
वर्ना कोरा कागज़ कोरा ही है ......

उस कोरे कागज़ को देख कर लगा ,
कही मेरा दिल  भी शायद इसी तरह तो नहीं ...?
क्यों की इस दिल की तड़प भी कुछ इस तरह है ,
सोच इसकी भी हंसी  उस कागज़ की तरह है ,
वो  चाहता है
एक साथी जो प्यार करे उसकी बुराइयों से
जो पहचान ले उसको उसकी परछाई से ,
लकिन डरता है उस कागज़ की तरह
कही कोई गन्दी तस्वीर या तहरीर न लिख दे ,
जिसे देखते या पढ़ते ही फाड़ कर फेंक दे लोग .....

मगर आज नई  सीख लिया ,मैंने कोरे कागज़ से,

हर अच्छी  बुरी सोच के आगे
अपनी बाहें खुली छोड़ देता है ,
चाहे जो लिखो बनाओ किस्मत पे छोड़ देता है ,
लेकिन  कागज़ की बेबाक अदा  सागर के किनारों की
तरह सब का इस्तकबाल करते हुवे
बुरी सोच की कुची या कलम रुकने नहीं देता ,
तहरीर ख़ुद की हो या तस्वीर अश्लील
सब का दिली स्वागत करता है ....................

कागज़ से  दरियादिल तालीम  लेकर

मेरे दिल ने तुम्हारे सामने अपना दामन फैला दिया है
सुलूक अच्छा करते हो या बुरा ,तुमपर छोड़ दिया है ,
गले लगा कर मरते हो खंजर या
कद्र करते हो मेरे जज़्बात की ..........

वैसे ......अपनी जान में मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है ,

हक़ीक़त में  सब के लिए  अपने आप को कबाड़ा  है ,
तुमसे  मेरा दिल अभीतक क्यों कोरा है ...?

बना दो तस्वीर अपनी

लिख दो  तहरीरे मुहब्बत
नाम तेरा भी होगा
बन जाएगी इस दिल की किस्मत ...........
उस् कोरे कागज़ की तरह ....आज
जिस पर तहरीरे ख़ुदा है  ,
जिस पर  तस्वीरे  ख़ुदा है ,
आज लगता है ये दिल ...........कोरा कागज़ है ....

  

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