**कहार**-(डोली उठाने वाला )
कैसे कहूँ तुमको अपना
तुम भी वही निकले ,
दूसरों के रंग में सराबोर ,
सामने पड़ते गले लगना
नज़र से ओझल होते भूल जाना ,
हम तो उस कहार की तरह ही हो गए है
जो अपना सब कुछ छोड़
मालिक का बोझ उठा कर
चल पड़ता है उसकी मंजिल की तरफ ,
कैसे कहूँ तुमको अपना ..........
तुम्हारी यादों का बोझ इस कहार के कन्धे
ढोते ढोते थक से गए है ,
डरता हूँ कहार लडखडा कर गिर न जाये
और यादों का मालिक नाराज़ न हो जाये ,
कभी सोचा है ............
ये कहार भी तो तुम्हारी तरह इंसान है ,
इसके कन्धे दर्द तो नहीं कर रहे
इतना तुम्हारे महसूस करने से ही
कहर का दर्द ख़त्म हो सकता है .....
कहर को भी मालिक में अपनेपन का अहसास हो जायेगा ,
जब की सफ़र से पहले तुमने क़रार किया था की
मै तुम्हारा ख्याल रखूँगा ......
मजबूरी का फायदा तुमने भी तो उठाया
दिलासा दे कर फ़रेब किया ....
किस बात का अपनापन
तुम्हारी बातों में भी तो ज़माने की बू है
जब ज़रुरत पड़ी डोली पे सवार हुवे ,
दूसरों के रंग में सराबोर ,
सामने पड़ते गले लगना
नज़र से ओझल होते भूल जाना ,
हम तो उस कहार की तरह ही हो गए है
जो अपना सब कुछ छोड़
मालिक का बोझ उठा कर
चल पड़ता है उसकी मंजिल की तरफ ,
कैसे कहूँ तुमको अपना ..........
तुम्हारी यादों का बोझ इस कहार के कन्धे
ढोते ढोते थक से गए है ,
डरता हूँ कहार लडखडा कर गिर न जाये
और यादों का मालिक नाराज़ न हो जाये ,
कभी सोचा है ............
ये कहार भी तो तुम्हारी तरह इंसान है ,
इसके कन्धे दर्द तो नहीं कर रहे
इतना तुम्हारे महसूस करने से ही
कहर का दर्द ख़त्म हो सकता है .....
कहर को भी मालिक में अपनेपन का अहसास हो जायेगा ,
जब की सफ़र से पहले तुमने क़रार किया था की
मै तुम्हारा ख्याल रखूँगा ......
मजबूरी का फायदा तुमने भी तो उठाया
दिलासा दे कर फ़रेब किया ....
किस बात का अपनापन
तुम्हारी बातों में भी तो ज़माने की बू है
जब ज़रुरत पड़ी डोली पे सवार हुवे ,
देखा महल अपना कहार को भूल गए ,
कहार तो हमदर्दी का भूखा ,मुहब्बत का प्यासा,
जमाने को भूला था ....
मगर तुमने करार तोड़ कर
हमदर्दी से भूखा रखा ,मुहब्बत से तडपाया
हर बात पे ज़माने को याद दिलाया
कैसे कहूँ तुमको अपना ......
ज़िन्दगी की ऊँची नीची राह पर कहार कितना संभल कर चल रहा था
के उसके मालिक को कोई तकलीफ न हो ,
और एक तुम हो की डोली में लगे फूल को
तोड़ तोड़ कर फेकते हुवे अपना मन बहला रहे थे
जिससे कहार की डोली बेतरह हिल रही थी ,.....
कभी सोचा के कहार ने कितने अरमान से
डोली को अपनी चाहत के फूल और तोरण से
एक एक कर सजाया था,
तुमने भी खुश हो कर कहार का शुकराना अदा किया था
तुम्हारी इस अदा को कहार अपनापन समझ बैठा
ज़माने से हो कर जुदा ,वफ़ा दर वफ़ा निभाता गया
अपने पैरों में लगे कांटे और कंकड़ के दर्द से बेखबर
तुम्हारे बोझ को अपनी जिम्मेदारी और किस्मत समझ कर
एक सुर ताल में बढ़ता रहा सफ़र दर सफ़र ......
आज तुम अपने साबिस्ता पर चैन से नींद की आगोश में हो
और कहार बोझ के दर्द से बेहोश
कैसे कहूँ तुमको अपना .....................
जब से तुम गए हो
कहार हो गया है लाचार
आज वो सूनी डोली भी नहीं उठा सकता
क्यों की तुमसे ज्यादा भारी है
तुम्हारी यादें ,जिसको जाते वक्त छोड़ गए तुम ,
ऐ यादों के मालिक ,क्या जाता तुम्हारा
ग़र पूछ लेते कहार से , तुम थके तो नहीं
मगर न हो सका ऐसा
ऐसे में ये कहार ,
वफ़ा करते करते अधमरा हो गया
बेवफा न कहलाऊ डर के पूरा मर गया
अन्दर से
आज ये कहार एक जिन्दी लाश है
न हमदर्दी की भूख है
न मुहब्बत की प्यास है
जो इसे अपना समझ कर दफ़न कर सके
इस जिन्दी लाश को एक ऐसे साथी की तलाशा है .......
ऐसे साथी की तलाशा है
ऐसे साथी की तलाशा है।।।।।।।।।।।।।।।।
कहार तो हमदर्दी का भूखा ,मुहब्बत का प्यासा,
जमाने को भूला था ....
मगर तुमने करार तोड़ कर
हमदर्दी से भूखा रखा ,मुहब्बत से तडपाया
हर बात पे ज़माने को याद दिलाया
कैसे कहूँ तुमको अपना ......
ज़िन्दगी की ऊँची नीची राह पर कहार कितना संभल कर चल रहा था
के उसके मालिक को कोई तकलीफ न हो ,
और एक तुम हो की डोली में लगे फूल को
तोड़ तोड़ कर फेकते हुवे अपना मन बहला रहे थे
जिससे कहार की डोली बेतरह हिल रही थी ,.....
कभी सोचा के कहार ने कितने अरमान से
डोली को अपनी चाहत के फूल और तोरण से
एक एक कर सजाया था,
तुमने भी खुश हो कर कहार का शुकराना अदा किया था
तुम्हारी इस अदा को कहार अपनापन समझ बैठा
ज़माने से हो कर जुदा ,वफ़ा दर वफ़ा निभाता गया
अपने पैरों में लगे कांटे और कंकड़ के दर्द से बेखबर
तुम्हारे बोझ को अपनी जिम्मेदारी और किस्मत समझ कर
एक सुर ताल में बढ़ता रहा सफ़र दर सफ़र ......
आज तुम अपने साबिस्ता पर चैन से नींद की आगोश में हो
और कहार बोझ के दर्द से बेहोश
कैसे कहूँ तुमको अपना .....................
जब से तुम गए हो
कहार हो गया है लाचार
आज वो सूनी डोली भी नहीं उठा सकता
क्यों की तुमसे ज्यादा भारी है
तुम्हारी यादें ,जिसको जाते वक्त छोड़ गए तुम ,
ऐ यादों के मालिक ,क्या जाता तुम्हारा
ग़र पूछ लेते कहार से , तुम थके तो नहीं
मगर न हो सका ऐसा
ऐसे में ये कहार ,
वफ़ा करते करते अधमरा हो गया
बेवफा न कहलाऊ डर के पूरा मर गया
अन्दर से
आज ये कहार एक जिन्दी लाश है
न हमदर्दी की भूख है
न मुहब्बत की प्यास है
जो इसे अपना समझ कर दफ़न कर सके
इस जिन्दी लाश को एक ऐसे साथी की तलाशा है .......
ऐसे साथी की तलाशा है
ऐसे साथी की तलाशा है।।।।।।।।।।।।।।।।
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