Tuesday, 18 September 2012

Khunti hindi poem , bejaan khunti yadon ki , tanhaai , - कविता सुनील अग्रहरि

एक तुम्हारे  जाने के बाद ,
कमरे की दीवार सूनी है  और खामोश भी ,
हमारी नज़रे  उस दीवार की खूँटी से मिली
जिसके ऊपर जिम्मेदारी थी ....तुम्हारी  ,
आज इस खूँटी को भी शायद
दीवार पर लगे होने का मतलब  समझ  में नही आ रहा है ,
दीवार और खूँटी आज अपने आप को अर्थहीन समझ रहे है ,
हमारी नज़रों में ..........
क्यों की मैंने बहोत दिन बाद आज  इनको देखा है ,
इन्हें याद आता है वो वक्त
जब मेरी नज़रे इन्हें कितनी देर तक लगातार
देखा करती थी ,
उस झरने की तरह जिसका पानी अनवरत
बिना किसी रुकावट के गिरता रहता है उस
पत्थर पर जिसको अपनी जान में कभी सूखेपन का अहसास
ही नहीं हुवा हो ,
लकिन आज शायद वो पत्थर डरता है ,
कही नमी एक  ख्वाब  न हो जाये
तब तड़प होगी उसे एक बूँद की .....

ठीक उसी तरह ये दीवार और खूँटी सोचते है ,

कही ऐसा तो नहीं मै  इन्हें भूल जाऊ
कल तक जो हमारी आदत में शुमार  था इन्हें देखना
वो सब एक ख्वाब हो जाये ...

मै इन्हें कैसे बेजान मान लूं ,

इन्हें आज भी हमारे में अपनापन झलकता है ,
वरना इनको हमारी तन्हाई से क्या लेना देना ,
आज ये परेशां है ,खामोश है ,सिर्फ मेरी वजह से ,
नहीं तो मैंने तुम्हारी तस्वीर ही तो टांगी थी इसपर ,
वो .....खूँटी भी कितनी इमानदारी से अपनी  जिम्मेदारी
निभा  रही थी,
चाहती तो वो भी बोझ समझ सकती थी
लकिन नहीं ....
वो दीवार भी कितनी जिम्मेदारी से वफ़ा निभाते हुवे
खूँटी की पकड़ आज तक मजबूत चोली दामन सी
बनाये हुवे है ,
सच कहूँ तो वफ़ा की इज्ज़त बरक़रार रखी है खूँटी और दीवार ने ,
  खूँटी और दीवार की मुहब्बत देख कर आज मै
दीवार से लग कर खूब रोया  तो लगा ............
तुम्हारी वजह से मेरी नज़र ही तो पड़ती थी
इन बेजान खूंटी पे ...

उसपे इतनी मुहब्बत मुझसे .......हाँ ?


फिर तुमको तो खुदा मान कर  सज़दा किया था ,

तुम तो बेजान नहीं हो ?
मैंने तो चाह था की तुम मुहब्बत की खूँटी बन कर
मेरे दिल में बस जाओ ....
मै  उस दीवार की तरह अपनी वफ़ा दिखाना चाहता हूँ ,
मेरे लिए न सही ...
इस खामोश दीवार और तन्हां खूँटी के लिए
अपनी तस्वीर तो वापस दे दो ,
मै  तुम्हें न सही तुम्हारी तस्वीर देख लूँगा
ये दीवार और खूँटी फिर आबाद हो जायेंगे
इनकी शिकायत खत्म हो जाएगी
इन्हें इनकी चीज़ मिल जाएगी

हमें न सही इन्हें तो खुश कर दो ,

तुम अपनी नज़र में बेजान से बेजान को मिला दो ,
मुहब्बत इन्ही से कर लूँगा
मिल के इनसे ही रो लूँगा
क्यों की मेरी नज़र में तुम तीनो जानदार हो , हाँ
तुम्हारी नज़र में हम तीनो बेजान हो सकते है ,
इतना सा रहम इन बेजुबानो पे कर दो ....
क्यों की तुम्हारे जाने के बाद ...............................

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