Monday 11 March 2013

Ishqu इश्क़ -कविता , प्यार , मुहब्बत , चाहत ,प्रेम , poem on contribution of love in life by sunil agrahari

        









                        


अपने जैसे चाहा बनाना उसे ,
बन गए उसके जैसे, पता न चला ,
डरते थे मौत से, के  आ न जाये कही ,
मर गए इश्क़  से , और पता न चला


अँधा इश्क है, या, इन्सा अँधा होता है ,

कैसी गफलत है ,अब तक पता न चला ,
मर्ज़ है या ये लत ,अब तलक है  बहस,
लोग करते है, या हो जाता है ,पता न चला ,


इश्क का उम्र से ,कोई लेना देना नहीं ,

उम्र बचपन है या पचपन, पता न चला ,
बचपना, उम्र पचपन में करने लगे वो ,
चर्चा -ए -आम होता है, पता न चला,

इश्क तक ठीक था ,शादी तक हो गई ,

ये दुर्घटना कब हुई  ,ये पता न चला ,
इश्क एकतरफा  हो, तो खतरनाक है ,
बन्दा लुटता रहा  और   ,  पता न चला ,


टूटा जब इश्क से ,तब  ये आई समझ ,

बन्दा  था काम का अब तक ,पता न चला ,
जीने के सलीके से, मै  वाकिफ न था ,
इश्क ने  सिखा दिया, और  पता  न चला


इश्क से पहले मै, आलसी था बहोत ,

अब घड़ी बन गया  हूँ ,पता न चला ,
सोते से जाग जाता हूँ, उसके लिए
 कब सुबह हो गई , ये  पता न चला ,


चांदनी इश्क वालो के ,संग होती है

सूरज कब ढल  गया , पता ना चला ,
इश्क से, इश्क करते है, इश्क वाले ही,
इश्क वालों को, अब तक पता न चला ,


मज़हबी ,बुज़दिल ,सियासते इश्क,करते है ,

इश्क मासूम  है उनको पता न  चला ,
जिंदा दिल ही, इश्क किया करते है
अच्छा है की मुर्दा दिल को, अब तक पता न चला ,


इश्क तो खुदा  की, इबादत पाक है ,

नापाक इश्क हो रहा है , पता न चला ,
इश्क में तो जान, दिया करते है , 
कत्ले इश्क करने वालो को, पता न चला ,

सहरदे मिल गई ,मज़हबी मिल गए ,

दुश्मनी दफ्न हो गई ,पता न चला ,
दूरियां घट गई , नजदीकियां बढ़ गई .
ये  नासमझों  को अब तक पता न चला ,

इश्क से अश्क है ,अश्क से इश्क है ,

खेल नज़रो का दोनों पता न चला 
इश्क़ और मुश्क दोनों छुपते नहीं  ,
दोनों दिखते  है सबको पता न चला ,







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