Tuesday 19 March 2013

Aam aadmi hindi kavita ,आम आदमी - mango poem , poem on common man , aam ki kavita

जानकारी काल पत्रिका जुलाई 2023 में प्रकाशित 

*आम - आदमी*
आम आदमी है ,या आदमी है आम,
ये कैसे पहचान हो की ,एक आदमी है आम,
जैसे 'आम ' की जातियां होती है भिन्न भिन्न ,
वैसे ही 'आम आदमी ' होता है छिन्न भिन्न ,
पका आम ऊपर से होता है एक दम पीला ,
आती है मस्त खुशबू ,अन्दर से गीला ,
आम आदमी भी दिखाता है
अजब गजब लीला, 
ऊपर से वो सख्त ,लेकिन अन्दर से ढीला ,
 
मीठा आम होता है कई बार हरा ,
गुठली छिलका पूरा रेशों से भरा ,
वैसे ही स्वस्थ आम आदमी दीखता है छरहरा ,
लेकिन अंदर से होता है वो एकदम डरा ,
मुसीबतों के रेशो से होता है पूरा भरा ,
सिकुड़े आम जैसे होता है अधमरा ,
आम आदमी को दुनियां चूसती है 
आम की तरह ,
आम आदमी को निचोड़ कर 
फेंकती है गुठली की तरह ,
वोटर भी आम आदमी है
कच्चे आम की तरह ,
नेता अपने वादे से पकाता है
कार्बाइड की तरह ,
नेताओं की भूख मिटती नहीं है 
आम आदमी को खा कर ,
तभी तो आम आदमी को रखता है
पोस्टरों में सजा कर ,
    
नेता सोचता है .....
बनाऊं इसका अचार या खा जाऊं पका कर,
या बनाऊं इसकी चटनी 
पी जाऊं आम पाना बना कर ,
थोडा वक्त मिल जाये तो 
काट छील कर खाता है ,
और समय कम होतो 
चलते चलते चूस जाता है ,
और चूसता भी है कितने 
एंगल बदल बदल कर ,
ऊपर से ,नीचे से, दाए बांये से खींच कर ,
जब तक की गुठली
आम आदमी की खोपड़ी सी गंजी न हो जाये ,
और ये विभत्स रूप देख कर
छिलका भी सिहर जाये ,
ये हालत होती है आम आदमी की 
जब वो हफ्ते भर में खत्म होता है 

इन्तहां तब हो जाती है ,जब आम आदमी 
आम के आचार की तरह डिब्बे में 
सालों साल बंद होता है ,
जब बॉस चाहे तो वो प्लेट में पड़ा होता है ,
कई बार तो वो "नाचीज़ चमचे" जैसे 
चावल औए पापड़ के नीचे दबा होता है ,
चटोरों की तरह बॉस खाने के बीच में 
चटकारे मार कर चाट चाट खाता है ,
चाटते हुवे फोन पे बीवी से बाते करता है ,
मसरूफ हो जाता है इतना ..
की पहले तो रेशा नोच कहता है , 
फिर गुस्सा आ जाये किसी पर तो
गुठली कूच कूच कर चबा जाता है ,
आम जैसे आदमी का तो 
वजूद ही ख़त्म हो जाता है,
कई बार तो आम आदमी बन जाता है खटाई,
नौकरशाही में फसा रहता है जैसे स्टैंड बाई ,
नौकरी पाने से रीटाएरमेंट तक जूते घिसता है,
पेंशन पाने के लिए वो अमचुर सा पिसता है,
मर मर के गर्मी में लगाता है कूलर या ए.सी.,
मैंगो जूस बन जाता है 
बिल भर के ऐसी तैसी, 
पट्रोल की प्राइस से घिस कट छिल के 
बन जाता है मुरब्बा ,
इसको मैनेज करने में याद आते हैं 
उसको अब्बा ,
बचते बचाते सब से जब सामने आती है पत्नी, 
वो भी आम आदमी की 
बनती है तबियत से चटनी ,
टाइम कम हो तो चटनी 
मिक्सी में पीसी जाती है ,
गर मन चटपटा हो तो 
सिलबट्टे पे कुटी जाती है ,
हांय रे आम आदमी , आम की तरह ,
न राजा होगा आम आदमी ,
कभी आम की तरह ,
जो गलती से बैठा आम आदमी, 
ताज़े तख़्त पर ,
कत्ले आम होगा आम आदमी मालिक की प्लेट पर ,

तभी तो सरकारे करती है ऐलान .........l
आम आदमी, का सब पे अधिकार है
जब की सारे अधिकार बिलकुल निराधार है ,
वो सारे अधिकार सूख कर
बन गए है आम पापड़ ,
कोशिश करो अधिकार लेने की
तो मिलता है झापड़ ,
बाते तो बहोत साऱी है बस कहता हूँ इतना ,
आम आदमी का अधिकार है
देखे कोरा सपना,
        
बस आम को खाने लिए देना पड़ता दाम है 
और आम आदमी तो पूरी तरह बेदाम है ...
ज्यादा कुछ करे तो सड़े आम सा,
हो जाता बदनाम है ....
हाय राम, है विडंम्बना , है राम में भी आम
यही आम आदमी राम को, चढ़ाता है आम
यही वक्त होता है , जब ख़ास होता है आम
आम तो आम है ,
थोडा उसमे खटास और मिठास है ,
आम आदमी के पास तो
सिर्फ खट्टी मीठी आस है ,
हाथो में प्रसाद लेकर करता है दुआये
अगले जनम में मुझको,
न आम आदमी बनाये ....३


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