Sunday 19 January 2014

जीवन संघर्ष - poem on struggle of life , zero to hero

   

………  जीवन संघर्ष   .............

 कविता मेरे  बचपन के  मित्र चेयरमैन, डी एच  एल  इंफ्राबुल्स इंटरनेशनल प्रा ली  डॉ  संतोष सिंह जी को समर्पित है। .......

शाम का हल्का अँधेरा ,पंछियों का चहचाना ,
घाट  गंगा  के किनारे ,मौजों का साहिल पे गुनगुनाना ,
सूनी हवा रेतो  बीच, उल्टे कदमों के निशान ,
मै बढ़ रहा था सपने ले कर , छोड़ते  सीधे कदमों के निशान,
सुबह लोगों कि इबादत  से ,हुवे वो पाक तख़्त ,
बैठ उसपे नीले आसमाँ में सपने देख बीतता वक़्त ,
आवाज़ आ रही थी जैसे लहरे कह रही हो ,
सच होंगे सपने तेरे ,जैसे दुआ कर रही हों ,
तू रुक न कभी तू थक न कभी बस तू बढ़ाता चल ,
मेहनत तेरी रंग लाएगी मच जायेगी एक दिन हलचल ,
मन था विचलित विचारो से ,वो काल कठिन था मेरा बड़ा ,
 भूत भविष्य  वर्तमान का ,झंझावात  बन पहाड़ खड़ा ,
डगमग पे चला ,कर रगड़ झगड़ ,दिल में था बस वो लक्ष्यस्थल ,
मेरे कदम निगाहों से कहते ,है कहाँ छिपा वो कर्मस्थल ,
हर सुबह की  किरणो से पूछा ,क्या जन्म व्यर्थ ये जायेगा ,
पर मन में था विश्वास  कहीं एक सुन्दर अर्थ ही आएगा ,
कठिन वक्त था जाने कितने रिश्ते नाते छूटे ,
अपने हुवे पराये जनम के बन्धन  टूटे ,
अन्जाने  बन गए सगे , बन गया खून सा नाता ,
मै तो मन से सूफी था ,दिल से सब को अपनाता  ,
मकसद नहीं था मेरा ,सिर्फ अपना ही करू भला ,
दूजों का ग़म  देख भर आता है मेरा गला ,
वो सुबह कभी तो आयेगी ,मानवता धर्म निभा पाऊंगा ,
तब होगा जीवन अर्थ पूर्ण ,संघर्ष विराम को पाऊंगा  .......  

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