……… जीवन संघर्ष .............
शाम का हल्का अँधेरा ,पंछियों का चहचाना ,
घाट गंगा के किनारे ,मौजों का साहिल पे गुनगुनाना ,
सूनी हवा रेतो बीच, उल्टे कदमों के निशान ,
मै बढ़ रहा था सपने ले कर , छोड़ते सीधे कदमों के निशान,
सुबह लोगों कि इबादत से ,हुवे वो पाक तख़्त ,
बैठ उसपे नीले आसमाँ में सपने देख बीतता वक़्त ,
आवाज़ आ रही थी जैसे लहरे कह रही हो ,
सच होंगे सपने तेरे ,जैसे दुआ कर रही हों ,
तू रुक न कभी तू थक न कभी बस तू बढ़ाता चल ,
मेहनत तेरी रंग लाएगी मच जायेगी एक दिन हलचल ,
भूत भविष्य वर्तमान का ,झंझावात बन पहाड़ खड़ा ,
डगमग पे चला ,कर रगड़ झगड़ ,दिल में था बस वो लक्ष्यस्थल ,
मेरे कदम निगाहों से कहते ,है कहाँ छिपा वो कर्मस्थल ,
हर सुबह की किरणो से पूछा ,क्या जन्म व्यर्थ ये जायेगा ,
पर मन में था विश्वास कहीं एक सुन्दर अर्थ ही आएगा ,
कठिन वक्त था जाने कितने रिश्ते नाते छूटे ,
अपने हुवे पराये जनम के बन्धन टूटे ,
मै तो मन से सूफी था ,दिल से सब को अपनाता ,
मकसद नहीं था मेरा ,सिर्फ अपना ही करू भला ,
दूजों का ग़म देख भर आता है मेरा गला ,
वो सुबह कभी तो आयेगी ,मानवता धर्म निभा पाऊंगा ,
तब होगा जीवन अर्थ पूर्ण ,संघर्ष विराम को पाऊंगा .......
अति सुंदर !
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