……… कैसे कहूं………
कैसे कहूं तुमको अपना ,
बुत पत्थर के से रिश्ते है।
दिल धूल सा बन पैरों पे गिरा
तुम अंजानो से मिलते रहे ,
कुछ भी न कहा क्या खता मेरी ,
बस ज़ख्मो पे मेरे हँसते रहे ,
कैसे कहूं तुमको अपना ………।
कई बरस सफर संग हमने किये
तुम अंजानो से मिलते रहे ,
कुछ भी न कहा क्या खता मेरी ,
बस ज़ख्मो पे मेरे हँसते रहे ,
कैसे कहूं तुमको अपना ………।
कई बरस सफर संग हमने किये
मोड़ जहाँ अन्धा आया ,
वही छोड़ दिया हमें सस्ते में ,
कैसे कहूं तुमको अपना ………।
मन गीली रेत सा बोझिल है ,
अब रिश्तों कि कोई उम्र नहीं ,
जज़बाती ठन्डे बस्ते में ,
bahut khoobsoorat!
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