Monday 30 June 2014

poem on dosti , yaari,mitrata,यारी खुदा - hindi kavita on friendship day @sunilagrahari

.......... यारी खुदा   27 /06 /2014    ……


शुक्र है अब तलक ज़िंदा  याराना है ,
 यारो की यारी से हम खुद पा गए ,

जब जी चाहे जब  संग झगड़ा किये ,
दूसरे पल ही जा के  गले लग गए ,
बेवजह रोते  हँसते बिताते थे दिन ,
रूठते और मनाते  जवां  हो गए ,

यारों में बद्जुबानी  की जगह ख़ास है 
कर के शैतानी सब को परेशान किये 
इक़ शरारत भरी मुस्कुराहट लिए 
करते हैं  इंतज़ार और मिलते  गए ,

हर मुसीबत में  साये से संग रहते है  
हंसी महफ़िल  यारों बिन   बेरंग है 
हमनेवाला हमप्याला हमदर्द है वो 
वक़्त बेवक्त के साज़ आवाज़ हो गए ,

रिश्ता खूं  का नहीं ये करिश्मा ही है 

खूं  के रिश्ते से भी ये सगे  हो गए
वक़्त पे घर के  रिश्ते पराये  हुवे 
दोस्ती  वाले  ये रिश्ते सगे  हो गए 

ये ज़रूरी नहीं संग हमेशा रहें 

यार यारों के  दिल में सदा रहते है 
याद जब मैंने उनको दिल से किया 
यार खुद आ गए ,जैसे खुदा आ गए   ………………








Friday 13 June 2014

मोमबत्ती- कविता , mombatti kavita , poem on candles , poem feelings of candle

……मोमबत्ती …………10/06/2014 

 
मोम की काया बनी इंसान की उपज हूँ 
सरे बाज़ार मै मिल जाती सहज हूँ 
किस्मत है अच्छी रिश्ता न किसी धर्म से
मेरा वज़ूद कायम है मेरे ही कर्म से ,
हर कौम में इज्ज़त आज भी है हमारी ,
आगे हूँ हर जुलूस में पीछे दुनिया सारी ,
जलती हूँ शान से गिरजा मंदिर मजार पर ,
त्योहारों को सजाया है रौशन बहार कर ,
मेरा न कोई रंग रूप जैसे ढालो ढल जाती हूँ ,
नाज़  नखरा करती नहीं जब जलाओ  जल जाती हूँ ,
दूजो के खातिर मैंने अपनी परवाह नहीं की 
टूटी  हो या अधजली पर रौशन नहीं कमी की ,
गरीबों के घर की मै  हूँ ज़रुरत,
रईसों के घर में हूँ मोम  की मूरत
होटल में कर अँधेरा  मुझको जलाते है 
कैंडिल लाइट डिनर कर रात हंसी करते है   
बुरा लगता है सामने जब गलत काम  होता है 
ना चाहते हुवे पिघलते  रौशन करना पड़ता है ,















काश अपने तरह से जलने  की अदा होती हमारी 
गलत काम देखते ही अंधियारे से करती यारी , 
कोई कोना रह न जाये कहीं तिमिर का बसेरा 
जलती हूँ अंतिम लौ तक हो किसी  का भी डेरा 
लाचार  हूँ मज़बूरी खुद से जल नहीं पाती 
वर्ना अँधेरे आशियानो  में खुद जा के जल जाती 
गुलाम  हूँ इंसान की मुझको वही जलाता 
दुनियाँ जहाँ में मुझको वही ले कर जाता 
नाज़ुक बदन  है मेरा कमजोर मत समझाना 
मेरी लौ को छूने की कभी हिम्मत मत करना
गलती से मेरे जो भी करीब आ गया 
दुश्मन हो या रहबर वो खाक हो गया 
अफ़सोस है मिटाती हूँ सिर्फ रात का अँधेरा 
काश मिटा पाती लोगों के जीवन का अँधेरा 
धन्य हो जाती हूँ  मेरे सामने जब नेक काम होता है 
अपनी ही लौ  की तपिश में ठंड का एहसास  होता है  
जल कर चुकाती हूँ मोल ,पाई पाई रत्ती रत्ती ,
धागे और मोम से बनी मै हूँ मोमबत्ती ………मै हूँ मोमबत्ती   ............. मै हूँ मोमबत्ती 


kursi कुर्सी hindi poem on chair - chair's feeling poem

  .


........... 30 /05/2014  ……

जाने कितने आये बैठे
उठ कर चले गए ,
बयां करू  अंदाज़ जुदा 
किस्सा कुर्सी कह गए ,

थक कर आये मुसाफिर 
सुस्ताए चले गए ,
कुछ को था इंतज़ार किसी का 
मिल कर चले गए ,

इन्सां कितने मेरे सामने 
मिन्नत करते आये ,
घुटने टेके हाथ जोड़ कर 
फिर भी ना मुझको पाये ,

नेता अफसर आम आदमी 
सब मुझमे ही समाये ,
जो बैठा आकर मुझपे 
सब पे रोब जमाये ,

चराग बुझे खानदान ख़तम 
शासन सत्ता मिट गए ,
मेरी चाहत  में स्वार्थी 
मूक बधिर बन गए ,

जिसकी लाठी उसकी भैंस 
ये बड़े बुज़ुर्ग कह गए,
जिसकी कुर्सी उसकी ऐंठ 
ये कुर्सी वाले कह गए ,

मैं तो भई न सगी किसी की 
लोग मुझे अपनाएं ,
जब बैठे कोई सच्ची शै 
मन मेरा भी हर्षाये ,………………।