……मोमबत्ती …………10/06/2014
मोम की काया बनी इंसान की उपज हूँ
सरे बाज़ार मै मिल जाती सहज हूँ
किस्मत है अच्छी रिश्ता न किसी धर्म से
मेरा वज़ूद कायम है मेरे ही कर्म से ,
हर कौम में इज्ज़त आज भी है हमारी ,
आगे हूँ हर जुलूस में पीछे दुनिया सारी ,
जलती हूँ शान से गिरजा मंदिर मजार पर ,
त्योहारों को सजाया है रौशन बहार कर ,
मेरा न कोई रंग रूप जैसे ढालो ढल जाती हूँ ,
नाज़ नखरा करती नहीं जब जलाओ जल जाती हूँ ,
दूजो के खातिर मैंने अपनी परवाह नहीं की
टूटी हो या अधजली पर रौशन नहीं कमी की ,
गरीबों के घर की मै हूँ ज़रुरत,
रईसों के घर में हूँ मोम की मूरत
होटल में कर अँधेरा मुझको जलाते है
कैंडिल लाइट डिनर कर रात हंसी करते है
बुरा लगता है सामने जब गलत काम होता है
ना चाहते हुवे पिघलते रौशन करना पड़ता है ,
काश अपने तरह से जलने की अदा होती हमारी
गलत काम देखते ही अंधियारे से करती यारी ,
कोई कोना रह न जाये कहीं तिमिर का बसेरा
जलती हूँ अंतिम लौ तक हो किसी का भी डेरा
लाचार हूँ मज़बूरी खुद से जल नहीं पाती
वर्ना अँधेरे आशियानो में खुद जा के जल जाती
गुलाम हूँ इंसान की मुझको वही जलाता
दुनियाँ जहाँ में मुझको वही ले कर जाता
नाज़ुक बदन है मेरा कमजोर मत समझाना
मेरी लौ को छूने की कभी हिम्मत मत करना
गलती से मेरे जो भी करीब आ गया
दुश्मन हो या रहबर वो खाक हो गया
अफ़सोस है मिटाती हूँ सिर्फ रात का अँधेरा
काश मिटा पाती लोगों के जीवन का अँधेरा
धन्य हो जाती हूँ मेरे सामने जब नेक काम होता है
अपनी ही लौ की तपिश में ठंड का एहसास होता है
जल कर चुकाती हूँ मोल ,पाई पाई रत्ती रत्ती ,
धागे और मोम से बनी मै हूँ मोमबत्ती ………मै हूँ मोमबत्ती ............. मै हूँ मोमबत्ती
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