Friday 13 June 2014

kursi कुर्सी hindi poem on chair - chair's feeling poem

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........... 30 /05/2014  ……

जाने कितने आये बैठे
उठ कर चले गए ,
बयां करू  अंदाज़ जुदा 
किस्सा कुर्सी कह गए ,

थक कर आये मुसाफिर 
सुस्ताए चले गए ,
कुछ को था इंतज़ार किसी का 
मिल कर चले गए ,

इन्सां कितने मेरे सामने 
मिन्नत करते आये ,
घुटने टेके हाथ जोड़ कर 
फिर भी ना मुझको पाये ,

नेता अफसर आम आदमी 
सब मुझमे ही समाये ,
जो बैठा आकर मुझपे 
सब पे रोब जमाये ,

चराग बुझे खानदान ख़तम 
शासन सत्ता मिट गए ,
मेरी चाहत  में स्वार्थी 
मूक बधिर बन गए ,

जिसकी लाठी उसकी भैंस 
ये बड़े बुज़ुर्ग कह गए,
जिसकी कुर्सी उसकी ऐंठ 
ये कुर्सी वाले कह गए ,

मैं तो भई न सगी किसी की 
लोग मुझे अपनाएं ,
जब बैठे कोई सच्ची शै 
मन मेरा भी हर्षाये ,………………। 




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