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........... 30 /05/2014 ……
जाने कितने आये बैठे
उठ कर चले गए ,
उठ कर चले गए ,
किस्सा कुर्सी कह गए ,
थक कर आये मुसाफिर
सुस्ताए चले गए ,
कुछ को था इंतज़ार किसी का
मिल कर चले गए ,
इन्सां कितने मेरे सामने
मिन्नत करते आये ,
घुटने टेके हाथ जोड़ कर
फिर भी ना मुझको पाये ,
नेता अफसर आम आदमी
सब मुझमे ही समाये ,
जो बैठा आकर मुझपे
सब पे रोब जमाये ,
चराग बुझे खानदान ख़तम
मेरी चाहत में स्वार्थी
मूक बधिर बन गए ,
जिसकी लाठी उसकी भैंस
ये बड़े बुज़ुर्ग कह गए,
जिसकी कुर्सी उसकी ऐंठ
ये कुर्सी वाले कह गए ,
मैं तो भई न सगी किसी की
लोग मुझे अपनाएं ,
जब बैठे कोई सच्ची शै
मन मेरा भी हर्षाये ,………………।
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