............ 23 /05 /2014 ………
पूरी सुनी न बात तुम उठ कर चले गए ,
आधे रहे जज़्बात , तुम उठ कर चले गए ,
हर मौसम भी पलट कर आता है एक बार,
वादा न किया आने का ,तुम उठ कर चले गए ,
पूरी सुनी न बात …………………
चाहत में हुवे थे ग़ुलाम , अब तक न रिहा हुवे ,
सांसों की डोर ना टूटी , तुम उठ कर चले गए ,
पूरी सुनी न बात ………………
पूरी सुनी न बात ………………
चाहत तो क़ुबूल किया था ,संग रहने का था करार ,
फिर किये बिना इंकार , तुम उठ कर चले गए ,
पूरी सुनी न बात .........................
पूरी सुनी न बात .........................
जीते न जिया महसूस किया , मरने पे तो छू लेना ,
ऐसे भी क्या नाराज़ के , तुम उठ कर चले गए ,
पूरी सुनी न बात …………………।
पूरी सुनी न बात …………………।
{अफसाना }
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