मझे अपनी ओर आकर्षित करते हुवे
मेरे अवचेतन मस्तिष्क में आ कर
मेरे शाब्दिक यौवन को जागृत करने लगी ,
मै उनको चेतन अवचेतन में महसूस करते
कशमकश कर करवट बदल रहा था ,
मुझे लगा ये नवयौवना रुपी शब्द मुझसे कुछ कहना चाहती है ,
उनकी बात सुनी तो महसूस हुवा ,वो मुझसे प्रेमालाप कर
एक नवजात कविता को इस सृष्टि में अवतरित करना चाहती है ,
और उन शब्दों का आलिंगन करने लगा ,
दीवार घडी की सूई की टिक टिक ताल से वातावरण
संगीतमय रतिपूर्ण हो रहा था ,
इनसे प्रभावित मंत्रमुग्ध कलम काग़ज़ पर इस तरह चल
रही थी जैसे दो दिल वार्तालाप कर मिल रहे हों ,
भावनाएं शब्द से वाक्य बन कलम के माध्यम से
मानो कागज़ को बार बार चूम रही हों
ऐ कलम इस कोरे काग़ज़ को भर दो
अपने हसीन जज़्बात रुपी शब्द से
और कभी ख़त्म न हो तुम्हारे भावनाओ का शाब्दिक यौवन
कलम शब्द दर शब्द चूमता आगे बढ़ता रहा ,
लेकिन प्रकृति का नियम ज्वर चढ़ता है तो उतरता भी है ,
निशा खत्म , भोर शनैः शनैः दस्तक देने लगी ,
कलम के शाब्दिक भाव सुस्त पड़ने लगी ,
अथक परिश्रम प्रेमाचार और निरंतर भावनापूर्ण सोच से
और मै जाग्रत हो कर हक़ीक़त में कलम उठता हूँ
शुरुआत होती है प्रसववेदना ,
नवजात कविता के जन्म का वक़्त आता है
कलम पूरी ताकत से ज़ोर लगा शब्दों को कागज़ पे उकेरने लगता है
थोड़ी ही देर में मासूम सुन्दर कोमल सी कविता कलरव करती
अपना आकार ले इस श्रिष्टि में अवतरित हो चुकी होती है……।
वस्तुतः भावपूर्ण शब्द तो हसींन वादियों में बिखरे हुवे है ,
आप जिस भाव में होते हो , वैसे ही शब्द
आप के मष्तिष्क के उर्वरक शाब्दिक यौवन शक्ति को जागृत कर
मस्तिष्क के गर्भ में प्रवेश करते है,
और बाद प्रसवपीड़ा के उत्पत्ति होती है
एक सुन्दर सुबह की नर्म कोमल घास पर
ओस की बूँद सी मासूम कविता ..........
No comments:
Post a Comment