Tuesday 21 July 2015

BHARAT YATAR , भारत की सैर- HINDI POEM ON MY INDIA BY SUNIL AGRAHARI






****भारत की सैर कराता हूँ ********

मेरे वतन की  बात बताता हूँ  
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

ये प्रेम की बगिया है  ,
प्यार की है फुलवारी ,
मिठास झलकती हर पुष्प में ,
जिससे आकर्षित दुनियां सारी 
तिरंगे से पहचान है , तिरंगे से ही मान 
अब हर दिल ये कहता है 
मेरा भारत महान 
उस बाग़  की बात बताता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

यह वह पवित्र भूमि है 
जहाँ राम कृष्ण ने कदम रखे 
इतने पावन  है लोग यहाँ 
हर एक में भगवान दिखे 
गंगा जमुना का संगम और गोदावरी की धारा ,
प्रकृति की गोद  में बसा अतुल्य वतन हमारा ,
उस पवित्र धरती की बात बताता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

जब गांधी ने थी आवाज़ उठाई 
तब साथ पूरे  देश का था 
जब अंगेजो को धुल चटाई 
तब वो जज़्बा कुछ विशेष सा था 
जिसकी  प्रतिभा अनेकता में एकता की हो 
उस भारत भूमि को मैं नित नित शीश नवाता हूँ 
उन  शहीदों की अमरगाथा सुनाता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 


जहाँ सदियों पहले ऋषियों ने 
चाँद तक की दूरी बतलाई 
फिर पहुँच कर मंगल पर 
अपनी  शक्ति है दिखलाई 
सम्पूर्ण विश्व की सैर कर मन ये कह उठता है 
सरे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा 
उस विलक्षण शक्ति  की बात बताता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई 
मिल जुल कर रहते भाई भाई 
विभिन्न संस्कृति भाषा प्रदेश 
अलग खान पान और अलग है देश 
जहाँ मिठास के साथ है थोड़ी खटास 
फिर भी सब प्रेम से रहते साथ साथ 
उस अद्भुत स्थल की बात बताता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

जिस भूमि ने जनम दिया वीरों को 
जिस भूमि ने पहचान दी वीरो  को 
इस सोने की चिड़िया की महानता  कैसे व्यक्त करूँ  
शब्दहीन हो जाता हूँ जब इसकी बात बताता हूँ 
स्वयं को इस पवित्र  भूमि का बतलाता हूँ 
भारतीय होने का गौरव  से भर जाता हूँ 
ऐसे वतन की गाथा सुनाता हूँ 
आओ मैं भारत की सैर कराता हूँ 

सचिन शर्मा 
vii -d 




Thursday 16 July 2015

Haasya vyangya kavitav, chali rail gadi hindi kavita ,RAIL Yatra HINDI POEM , TRAIN JOURNEY WITH REALISTIC FUNNY भारतीय रेल यात्रा (हास्य ) कविता BY SUNIL AGRAHARI

        





.. रेल गाड़ी (हास्य )(१६/०७ /२०१५ )

मेरी एक रेल यात्रा का अनुभव वर्णन है इस कविता में और मुझे ऐसा लगता है आप थोड़ा ध्यान दें तो सभी  यात्रा के अनुभव के रंग ऐसे ही होंगे. 

चली रेलगाड़ी चली रेलगाड़ी 
कभी चलती सीधी कभी चलती आड़ी........x 2 
भीड़ भरे डिब्बे में धक्का और धुक्की  
छोटी छोटी बातों में मुक्का और मुक्की 
बैठने के चक्कर में मची ठेलम ठेला 
पीछे के लोगों ने आगे धकेला 
शोर मच रहा था जैसे कुंभ का हो मेला 
ऊपर नीचे चारो तरफ सामान था फैला 
गोद  में बच्चे को सूझ रहा खेला
मोटू चढ़ रहा था खाते  हुवे केला 
हड़बड़ी में फस गई अम्मा की साड़ी 
चली रेलगाड़ी चली रेलगाड़ी   ………

ट्रेन चल पड़ी जब रुका आना जाना 
बैठे लोग आराम से खुला सब का खाना 
दो पूड़ी दे दो कोई कह रहा था 
सब्ज़ी संग आचार का मज़ा ले रहा था 
पेट भर गया कोई कह रहा रहा था 
मिठाई छुप छुपा कर कोई खा रहा था 
खट्टी मीठी खुशबू से नाक फट  रही थी 
अकेले बैठे भूखे की नज़र ना हट रही थी 
बच गया थोड़ा खाना ख़तम इसको कर दो 
आवाज़ आई ऊपर से भिखारी को दे दो ,
मिर्ची लग गई थोड़ा पानी दे दो भैया 
बोतल छुट गई घर  हाय  मेरी  दइया 
भूले जो सामान तो याद आई बाड़ी 
चली रेल गाड़ी चली रेल गाड़ी   …………


खाते हुवे मोबाईल पे बाते  कर रहा था 
मम्मी पापा बच्चे को बाय कह  रहा था 
कोई बोला सीट खोलो मुझको है सोना 
अचानक शुरू हो गया एक बच्चे का रोना 
माँ बोली  चुप हो जा लोग सो रहे है 
लेटे लोग मुँह बना किस्मत पे रो रहे है 
थके लेटे लोगों को आने लगी झपकी ,
लोरी माँ सुनाने लगी देने लगी थपकी 
टपक पड़ा टी टी बोला टिकट तो दिखाओ 
बगल में लेटे बच्चे की उम्र तो बताओ 
बिना टिकट बैठे लोग इधर उधर भागे 
कीमती सामान वाले पूरी रात जागे ,
भागती हुई रेल चढ़ रही थी पहाड़ी 
चली रेल गाड़ी चली रेल गाड़ी   …………


सोते बैठे लोगो को लगा एक झटका 
देखा तो खिड़की पे था कोई लटका 
इतने में चाय ले लो  आवाज़ दी सुनाई 
देखा जो सवेरा तो जान में जान आई 
हबड़ दबड़ सामान ले उतर रहे लोग 
बेड  टी वाले चाय का लगा रहे भोग 
वेटिंग टिकट गुस्से से लोगों ने फाड़ी 
मची अफरातफरी , जब रुकी रेलगाड़ी 
चली रेलगाड़ी चली रेलगाड़ी 
कभी चलती सीधी कभी चलती आड़ी     .... 












Monday 13 July 2015

Hasya vyangya kavita ,KHATAM SAMJHO FUNNY POEM , MOBIL PHONE HINDI POEM , ख़तम समझो -व्यंग्य- HINDI FUNNY POEM ON SMART PHONES .






........ ख़तम समझो  ……व्यंग्य ………(११ /०७/२०१५ )


शेर अर्ज़ करता हूँ....... 
बदलती दुनियां का असर ,लोगो पे ऐसा होने लगा ,
की ये आदमी बेवकूफ और फोन स्मार्ट होने लगा ,
तो कहते है  …… 

मोबाईल जब से आया है ,कैमरा तो ख़तम समझो , ,
टाइम मोबाइल में क्या देखा ,घडी भी अब ख़तम समझो , 
जली क्या लाइट मोबाइल में ,टोर्च  भी ख़तम समझो ,
fm  मोबिल क्या बोला ,रेडिओ पैकअप है समझो ,
मोबाइल ने गाना क्या गाया , mp3 cd ख़तम समझो,
मोबाइल में sms आने से ,लेटर भी ख़तम समझो ,
मोबाइल से जोड़ घटाना भाग ,कैलकुलेटर भी ख़तम समझो ,
मोबाइल पे कंप्यूटर सा काम  ,कंप्यूटर भी  ख़तम समझो ,
मोबाइल जब से है आया , सच झूठ का भरम समझो ,


मोबाइल से बात कहीं करना , इंसा से दुरी ख़तम समझो ,
वक्त कर रहा आगाह ,दुनियाँ वालो कुछ तो समझो ,
मोबाइल से बच्चे होंगे पैदा , सोचो क्या ख़तम समझो ,
मोबाइल जब से है आया ,चैन सुकून ख़तम समझो ,

शायराना अंदाज़ में कहते है   …………
और  अगर आप का मोबाइल बीवी हाथ में  आया ,
माँ कसम से कहता हूँ , वो पती ख़तम समझो ,
मोबाइल की मुट्ठी में दुनियाँ , ये दुनियां भी ख़तम समझो ,
मोबाइल है या भस्मासुर , छुआ जिसको ख़तम समझो ,


Thursday 9 July 2015

Poem on zindagi life's , sacchai , BIKAAOO HINDI poem , REALISTIC POEM बिकाऊ- HINDI POEM ON OF VALUES OF LIFE BY SUNIL AGRAHARI


   





बिकाऊ…०७ /०६/२०१५  

आज कल इस दुनिया में हर चीज़ बिकाऊ है 
इन्सा की जुम्बिश है , हर चीज़ बिकाऊ है            जुम्बिश -हरकत 
जो नज़र नहीं आता , अब वो भी बिकाऊ है 
इन्स ने न कुछ छोड़ा अब ,भगवन बिकाऊ है 
आज कल इस दुनिया में  .......... 


दूल्हा दुल्हन दोनों ,ऑनलाइन बिकाऊ है 
प्यार तो था अनमोल ,अब वो भी बिकाऊ है 
है वक़्त ये क्या आया , माँ बाप बिकाऊ है 
लानत ऐसे रिश्तों पे , जो रिश्ते  बिकाऊ है 
आज कल इस दुनिया में  .......... 

आज कल भगवन कहाँ और किस तरह बिकाऊ है ये निम्न लिखित पक्तियों में व्यक्त है 

मेले ठेले फुटपाथ पे  , हर दाम में बिकाऊ है 
छोटी बड़ी दूकान और,हर मॉल में बिकाऊ है 
कोई धर्म हो या त्यौहार ,सब में बिकाऊ है 
देशी विदेशी हर ब्रांड में , भगवन बिकाऊ है 
आज कल इस दुनिया में  .......... 

मिटटी पानी पत्थर  , लकड़ी बिकाऊ है 
पैकिंग के दम पे तो  , कूड़ा भी  बिकाऊ है 
मंदिर में चढ़े फल फूल  , कपडे बिकाऊ है 
शमशान और कब्रिस्तान में ,लाशे भी बिकाऊ है 
आज कल इस दुनिया में  .......... 


चैनो अमन ईमान,आबो हवा बिकाऊ है 
जल्वा ज़ालिम इंसा, झूठ फरेब, बिकाऊ है 
शासन सत्ता ,फ़ाका ,फतवा बिकाऊ है ,  (फ़ाका -गरीबी , फतवा -आदेश )
बेसुध बैठा है बान , भरोसा बिकाऊ है   ,      बान - रक्षक 
आज कल इस दुनिया में  ..........