Thursday, 29 September 2016

samajik samsya par hindi kavita , social issues , NAA BHOOLE -poem by sunil agrahari -on social media issues-ना भूले

   
***ना भूले ***        

वो भूख की आग में जलता रहा ,
कोई भूख न उसकी मिटा सका  ,
लोग मजामँ लगा कर देखते रहे ,
पर फोटो खींचना ना भूले ,

दुर्घटना की चोट से ,
वो सड़क पे मौत से लड़ता रहा , 
लोग खड़े  तमाशबीन रहे  
पर  फोटो खींचना ना भूले ,

वो नदी में डूबता बचता रहा 
चिल्ला के गुज़ारिश करता रहा ,
ज़िन्दगी बह गई पानी में ,
पर फोटो खींचना ना भूले ,

क़त्ल हुवा चौराहे पर सुनील 
वो जान की भीख मांगता रहा ,
लोग छुप के नज़ारा देखते रहे ,
पर फोटो खींचना  ना भूले ,

क्यों वेदना शून्य हो रहे हैं हम  ,
और मौत का तांडव देख रहे ,
एक कदम इन्सानियत बढ़ जाए ,
क्या पता कोई जान बच जाए,

कोई अमर नहीं इस दुनियां में ,
कुछ भी हो सकता किसी के साथ ,
ऐ मौत की फोटो खींचने वालों ,
डर उस मौत के मंज़र से ,
जब मौत के सामने तू होगा ,
कोई तेरी फोटो खींचेगा ,
सोच दिल पे तेरी क्या गुज़रेगी ,

 इंसानियत का काम क्या काम यही अब  ,
फोटो मौत की सोशल मीडिया पर भेजो,
" मौत की फोटो बनने से
 इंसानियत कहता है रोको "
लोगो की पसंद का क्या कहना
क्या देख रहे ,क्या दिखा रहे,
इंटरनेट की दुनियां में ,
मनोरंजन मौत से कर रहे,
घटना से न कोई सबक लेते
बस फोटो लाइक करते रहे , 
हैं बुरा वक़्त इंसानियत का ,
या बुरा वक़्त इन्सान का  ,
पहले चार कन्धों पर लाशें जाती थीं ,
अब एक कन्धा भी नहीं मिलता
मिलते हैं तो बस 
अन्जानी भीड़ में
 फोटो खींचने वाले।   (२६/०९ /२०१६)











Friday, 23 September 2016

Poem on ghamand , GUROOR -hindi poem by sunil agrahari - on ego arrogancy -गुरूर

        

******गुरूर*****     

हुवा जो दूर गुरुर से 
खुद से मुलाकात हुई 
सातवें आसमान पे रहने की,
आदत ही बदल गई ,
लगता था मुझको ,
सब कुछ का ज्ञान है ,
सिर्फ मेरा ही सम्मान है ,
और जो ना समझ पाया ,
उसमे  अपमान है ,
मेरे ही काम से आन बान शान है ,
कैसी ग़लतफ़हमी मैंने पाल रखी थी 
शेर के खाल में बिल्ली पाल रखी थी ,
ज़िन्दगी का मुझपर एहसान हो गया ,
वक़्त रहते  गलतियों का भान हो गया , 
खाली जगह ज़िन्दगी में रह गई है काफ़ी ,
मुझे ज़िन्दगी में बिछड़ो से मांगनी है माफ़ी ,
ऊँचाई पर न बैठना , रहता है डर गिरने का ,
ऊँची सोच रखना , रहता ना ग़म मरने का ,
सब का अंत आना है , सब कुछ यहीं रह जाना है ,
अहम की कश्ती को कम पानी में डूब जाना है ,
रहम के परिंदों को जीते जी तर जाना है ,
गुरूर का सुरूर तो एक दिन उतर ही जाना है ,
मैं मैं के गुरूर में तो बकरे को कट जाना है ,
वक़्त रहते संभलो ,
वर्ना क्या समझना और क्या समझाना है। 

 (२३/०९/२०१६ )


Tuesday, 20 September 2016

Poem on bhrstachar , corruption , PATI DANA KI by sunil agrahari- hindi poem on bad policies problems , ODISA HOSPITAL DEATH CASE SUFFERER DANA .-पाती दाना की

  

****पाती दाना की *****(१५ /०९/२०१६ )





poem on social issues 




ऐ मेरे ज़िन्दगी के माझी दाना ,
उदास मत होना , न रोना ,
मुझे हर जनम में तुझको ही पाना 
जिन पढ़े लिखे सभ्य कहे जाने वाले दौलतमन्द 
लोगों से तू लगा रहा था गुहार ,
वो आज सब गए तुमसे हार ,
अनपढ़ है तू ,लेकिन इल्म है तुझे इंसानियत का ,
जो शायद उनके पास नहीं ,
ग़रीब है तू ,लेकिन प्यार की  दौलत बेशुमार है तेरे पास ,
जो शायद उनके पास नहीं ,
वो दौलत के पुजारी , मुहब्बत करते है जिस्मानी ,
इन सब से जुदा तूने तो प्यार किया रूहानी ,
क्यों की 
मीलों चले पैदल ,कन्धों पे मुझे रख कर ,
मैं तो जी गई तेरे काँधो पे चल कर 
हिचके ज़रा  भी नहीं , थके ज़रा भी नहीं 
हौसला ना तेरा टूटा , जब धरा पर धरा ,
मुझे  ढोते ढोते  तू हो रहा था अधमरा ,
हर कदम आत्मविश्वास से पूरा था भरा ,
लोगो  की आँखों बातों से तू ना डरा ,
तेरी मुहब्बत के सामने ताजमहल ,
बौना लग रहा है , 
जो है इश्क की निशानी,
खामोश इंसानियत, कब्रिस्तान लग है ,
जो है ज़िन्दादिली की निशानी , 
तरसते है महलों वाले तेरे जैसे प्यार को ,
उनकी  ज़िन्दगी बीत जाती है , यार के दीदार को,
ऐ मेरे ज़िन्दगी के मांझी , तेरी कश्ती डूबी ,
पर कश्ती को मझधार में न छोड़ा ,
पतवार तू चलाता रहा ,रिश्ता ना तोड़ा ,
मुझे अब बड़ा सुकून है  ,
हमारी बेटी एक जिम्मेदार पिता की छाया 
में महफूज़ है ,
उसे मेरी कमी कभी भी महसूस न होगी ,
अगर हम गरीबी के जंगल में रहने वाले 
असभ्य जानवर जैसे प्राणी  है , 
तो कोई ग़म नहीं ,
लेकिन इंसानियत रुपी प्यार तो है ,
जो इन सभ्य शहरियों के पास नहीं,
धिक्कार है धिक्कार है धिक्कार है,
ज्यादा कुछ नहीं कहना , 
मेरे मांझी उदास मत होना ,
हर जनम में मुझे बस तेरा ही होना ..... 




Friday, 16 September 2016

WORLD MUSIC DAY SANGEET KAVITA -HINDI POEM ON FEELINGS ABOUT MUSIC -, INTERNATIONAL MUSCI DAY HINDI POEM KAVITA,,संगीत SANGEET SUNIL AGRAHAR

 
मॉरीशस 
प्रकाशित-आक्रोश पत्रिका 
मार्च अप्रैल 2017              

 ****संगीत ****
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में ,
मैं हूँ सन्नाटे में ,  हूँ शोर में ,
मैं हूँ ख़ुशी में , मैं हूँ ग़म में ,
दीदार नहीं मेरा , रहता हूँ ग़ुम मैं ,
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में..........

पंछियों के पंख ,फड़फड़ाहट के ताल में ,
लहरों के नृत्य कलरव,सागर नदी ताल में ,
बरसात की छोटी बड़ी ,बूंदों के ताल में ,
भूत हो भविष्य या , वर्त्तमान काल में ,
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में............

इन्सानों  के स्वभाव में ,शब्दों के रसभाव में ,
सूरज की पहली ,किरण की अहसास में,
रात दिन चारों  ,प्रहर के आभास में ,
जीवन के हर क्षण , सुरीले  एहसास में ,
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में.............

ख़ुदा के पास में , इबादत की आस में ,
सुन कर सुरीले गीत ,बन जाते हैं मेरे मीत ,
जी हाँ ,जी हाँ ,जी हाँ ,जी हाँ 
मैं हूँ संगीत मैं हूँ संगीत मैं हूँ संगीत 
मैं हूँ शाम में , मैं हूँ भोर में................