published i Akrosh Magazin May 22
**आवारा आँसू **
सुख दुःख तन्हाई के मौसम में,
कोई आए चाहे ना आए ,
आँखों का घरौंदा छोड़ ज़रूर ,
आंसू आवारा आ जाते हैं ,
आँखों के हंसी आशियाने में ,
ये छुप के बैठे रहते हैं ,
ज़ज़्बात के इक आवाज़ पर ,
आंसू आवारा आ जाते हैं,
दिल भारी उथल पुथल में हो ,
इनको न गवारा होता है,
जब तक दिल हल्का न होले ,
आंसू आवारा बहते हैं
सूरते हाल बयाँ करते ,
हर ज़िंदा दिल की आँखों से,
रोक न पाता कोई जब ,
आंसू आवारा होते हैं,
आँखों से निकल कर गालो तक ,
मंज़िल बंजारों सी होती है ,
तासीर में गर्मी होती है ,
जब आंसू आवारा होते हैं ,
खुदगर्ज़ मिजाज़ हैं इनके ,
ये वापस कभी ना जाते है ,
लम्बी यादें दे जाते हैं,
जब आंसू आवारा होते हैं...... ...... 29/01/17
****इंतज़ाम ****
मेरी ये कविता उन माता पिता को समर्पित है,
जिनके बच्चे रोज़गार के सिलसिले में माता पिता से दूर रहते है .....
औलादें पैदा होती है ,
सारी कायनात खुश होती है ,
और****
उनकी परवरिश में कमर टूट जाती है ,
सोचते हैं एक दिन, बुढ़ापे का सहारा बनेंगे ,
सुख दुःख के साथी बन कर रहेंगे ,
सोच कर*****
हमने फर्ज़ माँ बाप का चुका तो दिया ,
जैसे खुले पिंजरे में दाना बाहर रख दिया,
परिन्दों को मिला उनका आसमाँ ,हम हुए खाली,
तन्हा हुए घर कोने , अब अकेले मानते है दिवाली ,
और अब ये आलम है के ******
वो बच्चे दूर से मज़बूरियों का रोते है रोना ,
फिर बाते बड़ी कर के सिखाते हैं जीना ,
तब एहसास हुआ माँ बाप को*****
"न करें फर्जअदाई , तो दीन से गए ,
और करें ,तो दूर अपनी जान से गए,
जान कर अन्जाने में हम ,कैसा काम कर गए ,
हम तो अपनी ही तन्हाई का इंतजाम कर गए"******** २३/०१/२०१७
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