सुख दुःख तन्हाई के मौसम में, कोई आए चाहे ना आए , आँखों का घरौंदा छोड़ ज़रूर , आंसू आवारा आ जाते हैं ,
आँखों के हंसी आशियाने में , ये छुप के बैठे रहते हैं , ज़ज़्बात के इक आवाज़ पर , आंसू आवारा आ जाते हैं, दिल भारी उथल पुथल में हो , इनको न गवारा होता है, जब तक दिल हल्का न होले , आंसू आवारा बहते हैं सूरते हाल बयाँ करते , हर ज़िंदा दिल की आँखों से, रोक न पाता कोई जब , आंसू आवारा होते हैं, आँखों से निकल कर गालो तक , मंज़िल बंजारों सी होती है , तासीर में गर्मी होती है , जब आंसू आवारा होते हैं , खुदगर्ज़ मिजाज़ हैं इनके , ये वापस कभी ना जाते है , लम्बी यादें दे जाते हैं, जब आंसू आवारा होते हैं...... ...... 29/01/17
****इंतज़ाम **** मेरी ये कविता उन माता पिता को समर्पित है, जिनके बच्चे रोज़गार के सिलसिले में माता पिता से दूर रहते है .....
औलादें पैदा होती है ,
सारी कायनात खुश होती है , और**** उनकी परवरिश में कमर टूट जाती है , सोचते हैं एक दिन, बुढ़ापे का सहारा बनेंगे , सुख दुःख के साथी बन कर रहेंगे , सोच कर***** हमने फर्ज़ माँ बाप का चुका तो दिया , जैसे खुले पिंजरे में दाना बाहर रख दिया, परिन्दों को मिला उनका आसमाँ ,हम हुए खाली, तन्हा हुए घर कोने , अब अकेले मानते है दिवाली , और अब ये आलम है के ****** वो बच्चे दूर से मज़बूरियों का रोते है रोना , फिर बाते बड़ी कर के सिखाते हैं जीना , तब एहसास हुआ माँ बाप को***** "न करें फर्जअदाई , तो दीन से गए , और करें ,तो दूर अपनी जान से गए, जान कर अन्जाने में हम ,कैसा काम कर गए , हम तो अपनी ही तन्हाई का इंतजाम कर गए"********