****इंतज़ाम ****
मेरी ये कविता उन माता पिता को समर्पित है,
जिनके बच्चे रोज़गार के सिलसिले में माता पिता से दूर रहते है .....
औलादें पैदा होती है ,
और****
उनकी परवरिश में कमर टूट जाती है ,
सोचते हैं एक दिन, बुढ़ापे का सहारा बनेंगे ,
सुख दुःख के साथी बन कर रहेंगे ,
सोच कर*****
हमने फर्ज़ माँ बाप का चुका तो दिया ,
जैसे खुले पिंजरे में दाना बाहर रख दिया,
परिन्दों को मिला उनका आसमाँ ,हम हुए खाली,
तन्हा हुए घर कोने , अब अकेले मानते है दिवाली ,
और अब ये आलम है के ******
वो बच्चे दूर से मज़बूरियों का रोते है रोना ,
फिर बाते बड़ी कर के सिखाते हैं जीना ,
तब एहसास हुआ माँ बाप को*****
"न करें फर्जअदाई , तो दीन से गए ,
और करें ,तो दूर अपनी जान से गए,
जान कर अन्जाने में हम ,कैसा काम कर गए ,
हम तो अपनी ही तन्हाई का इंतजाम कर गए"********
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