Wednesday 22 March 2017

poem on samajik samsya , social issues JUNG POEM BY SUNIL AGRAHARI - जंग

   

****जंग  ****  poem on fight , poem on social issues ,jung                                                       


जंग की बहार है ,जंग की बहार है ,
तंग दिल हर तरफ़ तादाद बेशुमार है ,

छोटी मोटी बात पर लड़ाई आर पार है ,
दो दिलों के बीच खींची अहम् की दीवार है ,


जीत सिर्फ अपनी है दूसरों की हार है ,
सहन न कुछ भी पर प्यार की दरकार है ,

बाँटना ना कुछ भी बस लेने की गुहार है ,
पेट है भरा फिर भी खाने की मार है ,

सूफ़ी है सहमे और अताइयों के वार हैं,
नफरतों की धूप में मुरझा रहा प्यार है ,

दुश्मनी है खुल के ,सिकुड़ता सा प्यार है ,
इंसान अपनी जंग का खुद हो रहा शिकार है ....... 

23/03/2017 











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