****जंग **** poem on fight , poem on social issues ,jung
तंग दिल हर तरफ़ तादाद बेशुमार है ,
छोटी मोटी बात पर लड़ाई आर पार है ,
दो दिलों के बीच खींची अहम् की दीवार है ,
सहन न कुछ भी पर प्यार की दरकार है ,
बाँटना ना कुछ भी बस लेने की गुहार है ,
पेट है भरा फिर भी खाने की मार है ,
सूफ़ी है सहमे और अताइयों के वार हैं,
दुश्मनी है खुल के ,सिकुड़ता सा प्यार है ,
इंसान अपनी जंग का खुद हो रहा शिकार है .......
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