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magzine - Jankaari kaal
Delhi - February 21
उम्र भर आँखे मसलता रहामुसलसल चश्मा साफ़ करत रहा ,
न सूझा के धूल नज़रिये में है ,
इल्ज़ाम ज़माने पे लगाता रहा ,
ख़ुद को क़ामिल समझता रहा,
मशवरा मुफ्त सब को देता रहा ,
न सुझा के महफ़िल की सुन लूँ कभी ,
बेवजह तमाशा मैं बनता रहा ,
बेसबब बहस उनसे करता रहा ,
बातें मुकम्मल ,काटता मैं रहा ,
न सुझा के स्याह तो स्याह होता है ,
बारहा सोने को पीतल कहता रहा........
इल्ज़ाम ज़माने पे लगाता रहा ,
ख़ुद को क़ामिल समझता रहा,
मशवरा मुफ्त सब को देता रहा ,
न सुझा के महफ़िल की सुन लूँ कभी ,
बेवजह तमाशा मैं बनता रहा ,
बेसबब बहस उनसे करता रहा ,
बातें मुकम्मल ,काटता मैं रहा ,
न सुझा के स्याह तो स्याह होता है ,
बारहा सोने को पीतल कहता रहा........
सुनील अग्रहरी
मुसल्सल- लगातार
क़ामिल - सम्पूर्ण होना
मशवरा - सलाह
बेसबब - बिना मतलब
मुकम्मल - सही बात
बारहा - कई बार,प्रायः
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