GOAL 17: PARTNERSHIPS FOR THE GOALS
Revitalize the global partnership for sustainable development
मेरी ये रचना पूर्व प्रधानाचार्य एवं वर्तमान निदेशक श्रद्धेय श्री अशोक पाण्डे जी को सादर समर्पित है ,आज तक उनके व्यक्तित्व को जितना मैं अनुभव कर पाया हूँ उसकेअनुपात में मेरी रचना सूरज को दिया दिखने जैसा है ......
मै बढ़ा अकेले तो क्या बढ़ा ,ग़र मीत मेरा ना बढ़ा ,
मैं खड़ा अकेले तो क्या खड़ा ,ग़र मीत मेरा ना हुआ खड़ा
है जीत मेरी जीत क्या , ग़र जीत न हो मेरे यार की
विश्वाश अटल करते सब पर, ये जीत है उनके प्यार की
जिस राह पे तन्हां मैं चला ,उस पर हो मेरा हमराह भी
मेरी हर सफलता तब सफल जब हो सफल मेरा यार भी
मेरी हर विफलता भी सफल ,ग़र मीत ना हो उसपर विफल
मेरी हर सफलता भी विफल ,जब मीत मेरा हो विफल
नित खोजते नई मंज़िले ,तरक्की दुनियाँ के वास्ते ,
हर कोई आगे बढ़ सके , बनाते नित नए रास्ते ,
हो कारवां उस राह पे , जिस पथ पे चल के मै बढ़ा
जीना नहीं निजता लिए ,हो वख्त कैसा भी आ पड़ा
ग़र मज़िलों के मुश्किलों में देखा मीत को अड़ा
ख़ुद शून्य बन कर अंक संग ,बनाते अंक को है बड़ा
sunil agrahari ५/६/२०१७
No comments:
Post a Comment