Monday 26 March 2018

Poem on life's jiwan AAJ KAL hindi poem , REALISTIC POEM - BY SUNIL AGRAHARI - आज कल


Published in  Mauritius 
Magazine - Akrosh
Jun 18

जीवन में  कैसा ग़दर मच रहा है,
तेंदुए का रुख शहर को हो रहा है ,

कोई रो रहा है , कोई हंस रहा है ,
वख़्त के दलदल में ,सब धंस रहा है ,

किसी की मुस्कुराहटों से कोई जी रहा है ,
हर कोई किसी की वजह बन रहा है ,

कोई ज़िंदा रहने की खातिर खा रहा है ,
कोई सिर्फ खाने के लिए जिए जा रहा है ,

ज़ज़्बात झूठे सच्चे में  कोई बह रहा है ,
आँखों में किसी की कोई गड़ रहा है ,

किसी की सिफारिशो से कोई बढ़ रहा है ,
कहानी  किसी की कोई गढ़ रहा है ,

उलझन किसी की कोई सुलझा रहा है ,
गलत बात को सही कोई समझा  रहा  है ,

इंसानियत पे एतबार कम हो रहा है ,
नासमझ मस्त ,समझदार मर रहा  है ,

गल्ती किसी की सजा कोई ढो रहा है
सुबूतों की जीत है कानून सो रहा है 

रिश्तों की तासीर काँच हो रहा है ,
पीसी चीनी समझो,नमक मिल रहा है,

कौन किसके साथ भरम हो रहा है ,
हर बात पे मुद्दा गरम हो रहा है ,

गरम मुद्दों से सवाल पैदा हो रहा  है ,
सवाल पैदा होते ही खड़ा हो रहा है ,

सुनील  इन सवालों संग पहेली हो रहा,
चुने संग पानी ,दही की सहेली हो रहा है। 








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