तेंदुए का रुख शहर को हो रहा है ,
कोई रो रहा है , कोई हंस रहा है ,
वख़्त के दलदल में ,सब धंस रहा है ,
किसी की मुस्कुराहटों से कोई जी रहा है ,
हर कोई किसी की वजह बन रहा है ,
कोई ज़िंदा रहने की खातिर खा रहा है ,
कोई सिर्फ खाने के लिए जिए जा रहा है ,
ज़ज़्बात झूठे सच्चे में कोई बह रहा है ,
आँखों में किसी की कोई गड़ रहा है ,
किसी की सिफारिशो से कोई बढ़ रहा है ,
कहानी किसी की कोई गढ़ रहा है ,
उलझन किसी की कोई सुलझा रहा है ,
गलत बात को सही कोई समझा रहा है ,
इंसानियत पे एतबार कम हो रहा है ,
नासमझ मस्त ,समझदार मर रहा है ,
गल्ती किसी की सजा कोई ढो रहा है
सुबूतों की जीत है कानून सो रहा है
रिश्तों की तासीर काँच हो रहा है ,
पीसी चीनी समझो,नमक मिल रहा है,
कौन किसके साथ भरम हो रहा है ,
हर बात पे मुद्दा गरम हो रहा है ,
गरम मुद्दों से सवाल पैदा हो रहा है ,
सवाल पैदा होते ही खड़ा हो रहा है ,
सुनील इन सवालों संग पहेली हो रहा,
चुने संग पानी ,दही की सहेली हो रहा है।
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